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Radheshyam Ramayan (राधेश्याम रामायण सम्पूर्ण 25 भाग)

220.00

Author Radhe Shyam
Publisher Shree Radhe Shyam Pustkalay
Language Hindi
Edition 1st edition
ISBN -
Pages 624
Cover Hard Cover
Size 15 x 2 x 23 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0062
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Description

राधेश्याम रामायण सम्पूर्ण 25 भाग (Radheshyam Ramayan)  उस तपोभूमि पर एक दिवस वट के नीचे बैठे हर थे। सच्चिदानन्द के चिन्तन में एकाग्रचित्त भूतेश्वर थे॥ भगवान त्रिलोचन के समीप भगवती उमा थी भ्राज रही-मानों दाएँ हों परम पुरुष, बाएँ-दिशि प्रकृति विराज रही॥ यह मायापति हैं राम कौन? जिनकी इतनी धुन है मन में? क्या वही जानकी-जीवन हैं, जो व्याकुल बिचरे हैं वन में? है दक्षसुता की देह नहीं, अब तो सेवा में गिरजा है। फिर पूर्वजन्म की उल्झन को, प्रभु सुलझादें तो अच्छा है। हो भक्त भागीरथ पर प्रसन्न, तत्क्षण उसको गंगा दी थी। प्रभु कह देंगे उसने बरसों, अत्यन्त तपश्चर्या की थी॥ तो मैंने भी की देह भस्म, मेरी इस बलि पर ध्यान करें। ‘श्रीराम-कथारूपी’-गंगा, अब मेरे लिए प्रदान करें॥ वह गंगा कलिमल-नाशक है, इससे जन-मन धुल जाता है। वह मूर्तिमयी यह है अमूर्त, वह गति यह मति की दाता है। वह वृक्षादिक को ढा-ढाकर-विस्तार बढ़ाती जाती है। यह क्रोधादिक का करे संहार-अज्ञान मिटाती जाती है। आचमन मात्र से जिस प्रकार आनन्द वह बेहद देती है। यह श्रवणमात्र ही से तैसे, निर्वाण परम पद देती है। वह धार हिमालय से चलकर सागर में क्षय हो जाती है। यह धार सगुण से पैदा हो-निर्गुण में लय हो जाती है॥ इसलिए कथा का प्रवचन कर, जगमंगल-मंगल भवन करें। गंगा की प्रगट जटाओं से यह वाणी द्वारा कथन करें॥

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