Kiro Hasta Rekhae (कीरो हस्तरेखाए)
₹127.00
Author | - |
Publisher | Diamond Pocket Books |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | 81-7182-204-1 |
Pages | 192 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | DPB0019 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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कीरो हस्तरेखाए (Kiro Hasta Rekhae) किसी बात या वस्तु के सम्बन्ध में तभी विश्वास होता है जब उसे अन्तरात्मा द्वारा देख या समझ लिया जाए। दो वर्ग है- आस्तिक और नास्तिक। दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। मानव समाज की वास्तविकता या सत्य की यथार्थता को प्रमाणित करने के लिए दोनों ही प्रकार के व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
एक अणु भी अपने अस्तित्व में महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए किसी भी वस्तु या विषय को छोटा समझकर अध्ययन के अयोग्य समझना उचित नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति यह धारणा बना ले कि हस्त विज्ञान विचारणीय विषय नहीं तो यह उसका कोरा भ्रम मात्र है। क्योंकि अनेक बड़ी-बड़ी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सच्चाइयां और वास्तविकताएँ जिन्हें कभी नगण्य समझा जाता था. वे अब असीमित शक्ति का साधन बन गई है। ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध है कि हस्त विज्ञान रूपी अणु का विश्लेषण करके तो देखें। मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। अध्ययन स्वयं ही अपनी सच्चाई प्रमाणित कर देगा।
हस्त विज्ञान के पक्ष में मैने आयुर्विज्ञान और विज्ञान से सम्बन्धित अनेक तत्त्वों को एकत्र करने का प्रयास किया है जिन्हें मैं आगे चलकर पाठकों के समाने प्रस्तुत करूंगा। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाएगा कि मनुष्य के हाथ एक विधान का अनुसरण करते हैं। इसलिए जो प्रभाव उस विधान पर पड़ता है वही हाथों में दिखाई देता है। इस विज्ञान से सम्बन्धित जिन ख्यातिलब्ध विद्वानों के दिमाग और हाथ के सम्बन्धित होने के बारे मे जो धारणाएँ बनाई है और जो विचार व्यक्त किये है उन्हें मैं बता देना चाहता हूँ कि हस्त विज्ञान के अध्ययन में और उसे विकसित करने में यूनान के अनेक दार्शनिक और वर्तमान काल के वैज्ञानिकों ने भी इस ओर ध्यान दिया है, दिलचस्पी ली है।
जब हम मनुष्य की क्रियाशीलता और उसके पूरे शरीर पर प्रभाव के सम्बन्ध में विचार करते हैं तो हमें यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होता कि जिन वैज्ञानिको ने पहले यह प्रमाणित किया था कि मानव मस्तिष्क और उसके हाथों के बीच जितने भी स्नायु हैं उतने शारीरिक व्यवस्था में और कहीं भी नहीं हैं। मस्तिष्क तब तक कुछ भी नहीं सोच सकता जब तक कि हम हाथों से अनुभव न करें। जब भी मस्तिष्क में कोई विचार उत्पन्न होता है तो उससे पहले हमारे हाथ को उसकी अनुभूति हो जाती है। आज के वैज्ञानिकों ने अपनी खोज के आधार पर इस बात को प्रमाणित कर दिया है। यदि हम केवल इसी दृष्टिकोण से हस्त विज्ञान को देख तो उसकी सच्चाई असंगत दिखाई नहीं देती।
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