Aghor Pant aur Sant Kinaram (अघोर पंत और संत कीनाराम)
₹170.00
Author | Dr. Sushila Mishr |
Publisher | Vishvidyalaya Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 3rd edition, 2016 |
ISBN | 978-93-5146-120-3 |
Pages | 206 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0116 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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CompareDescription
अघोर पंत और संत कीनाराम (Aghor Pant aur Sant Kinaram) कबीर साहब तथा दादूजी की भाँति औघड़ संत कीनारामजी भी मध्यकालीन साधना-साहित्य को दिशा देने वालों में अन्यतम हैं। कीनारामजी एक सिद्ध पुरुष थे। इनके सम्बन्ध में मुझे जो सर्व-प्रथम जिज्ञासा हुई उसकी प्रेरणा मुझे कीनारामजी के कुतुहलपूर्ण चमत्कारों को सुनकर तथा उसके परिणाम स्वरूप प्रमाणों को देखने से हुई। इनका जन्म-स्थान (रामगढ़) तथा इनके द्वारा स्थापित रामशाला-रामगढ़ (ब्लॉक चहनियाँ, तहसील चन्दौली, वाराणसी) मेरे निवास स्थान (ग्राम-हसनपुर) से लगभग ३-४ किलो मीटर उत्तर पूरब में स्थित है। मन में अनुसंधान कार्य के प्रति बड़ी रुचि थी। मैं अनवरत ऐसे विषय की तलाश में थी जिस पर कम काम हुआ हो या जिस पर काम ही न हुआ हो। संत कीनारामजी मुझे ऐसे ही प्रतीत हुए। डॉ० धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री को पुस्तक ‘संतमत का सरभंग सम्प्रदाय’ का अवलोकन करने पर मुझे अत्यधिक उत्साह मिला। मैंने सोचा ‘अघोर पंथ और कोनाराम’ शोध-कार्य के लिए यथोचित विषय सिद्ध होगा। एक तरफ इनकी वाणी में उच्चकोटि का काव्य वर्तमान है तथा दूसरी तरफ इनके विषय में लोगों को जानकारियाँ भी कम उपलब्ध है तथा काम भी नहीं हुआ है। जैसे- रामशाला रामगढ़, हरिहरपुर, देवल, ‘क्री ‘कुण्ड-वाराणसी के सामान्य जन-समुदाय के बीच बाबा कीनाराम के चमत्कारों की खूब चर्चा होती है।
इस प्रकार उक्त परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए ‘अघोर पंथ और संत कीनाराम‘ विषय पर शोध कार्य करने का निश्चय किया। अनुसंधेय विषय पर जब सीमग्रियों का अभाव होता है तो परेशानियों को सामना करना ही पड़ता है। अतः मेरे सामने भी सामग्री संग्रह करने में दिक्कतें आई। बाबा राधेकृष्ण ‘आनन्दजी’ (सेनपुरा, चेतगंज-वाराणसी) की सौजन्यता एवं कृपा से मुझे बाबा कौनारामजी की रचनाओं (विवेकसार, रामगीता, यीतावली, रामरसाल) की पाण्डुलिपि देखने को मिली। कीनाराम-वाणी के रहस्य को समुचित रूप में समझने के लिए कीनारामजी द्वारा स्थापित मठों (रामशालों) में गई जहाँ मुझे कीनारामजी के जीवन तथा वाणी के विषय में कुछ जानकारी उपलब्ध हुई। कौनाराम तथा अघोर-पंथियों के आचार-विचार का ज्ञान प्राप्त हुआ और पंच के हास एवं विकास के विषय में जानकारी प्राप्त हुई।
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