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Laya Brahman Ke Upaasakadvay (लयब्रह्म के उपासकदव्य)

425.00

Author Dr. Vanmala Parvatkar
Publisher Sharda Sanskrit Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2016
ISBN 978-93-81999-23-3
Pages 250
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSS0075
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Description

लयब्रह्म के उपासकदव्य (Laya Brahman Ke Upasakadvay) प्रस्तुत कृति में भारतवर्ष के यशस्वी कलाकार गोवाप्रान्तवर्ति स्व. लक्ष्मणराव पर्वतकर ‘लयभास्कर’ एवं तत्तनुज स्व. रामकृष्णराव पर्वतकर ‘लयकार’ के सन्दर्भ में दुर्लभ तथ्यों को उपस्थापित किया है। उक्त दोनों संगीत मनीषी की जीवनयात्रा भी स्वतः में अनुपम रही। सन् 1880 में गोमन्तक (गोवा) प्रान्त के पर्वतशिखर पर इनका जन्म हुआ। कुलदेवता चन्द्रेश्वर भूतनाथ की अनन्य उपासना से कुलक्रमानुगत संगीत विद्या में पूर्व-पूर्वजों के कृपाप्रसाद से ऐसी ख्यातिलब्ध की, जो इतिहासप्रसिद्ध हो गयी। दोनों साधकों के जीवनी से सम्बन्धित अनेक अप्रसिद्ध दस्तावेज, जो दस-पाँच प्रतिशत संगीतशास्त्र के विद्वानों को ही विदित है, ऐसे महान् तपःपूत साधकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को आधार मान कर इस कृति की संरचना हुई।

स्व. लक्ष्मणराव संगीत विद्या के विविध क्षेत्रों में यथा- नाट्यसंगीत, भजन, तबला, पखावज आदि में निपुण थे। इन्होंने कठिन साधना से इस विद्या में उच्चोच्च कीर्तिमान भी स्थापित किया, जिन्हें संगीतकारगण पूर्ण सम्मान के साथ ‘लयविद्या के सम्पूर्ण पंचाङ्ग’ के रूप में स्वीकार करते थे। ‘खाप्रूमाम-खाप्रूमामा-लयभास्कर’ आदि अनेक नाम, उपनाम एवं उपाधियों से इनकी पहचान तत्कालीन सामान्य जनमानस में सुप्रसिद्ध रही।

इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यह है कि खाप्रूमाम ने लयब्रह्म की साधना करके लयभास्कर की उपाधि निर्विवाद प्राप्त की। खाप्रूमाम और उनक सुपुत्र रामकृष्ण पर्वतकर द्वारा प्राप्त ज्ञान की जानकारी आज के तथा कल के संगीत अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों के लिये स्फूर्तिदायक, मार्गदर्शक बनेगी। असंख्य विद्यार्थियों में से एक विद्यार्थी भी गूढ़साधना करता है तो वो भीतर के प्रकाश का दर्शन कर सकता है और संगीत जगत का कल्याण कर सकता है। पुस्तक रूप में संगीत के इतिहास के पृष्ठों में भी कलाकार द्वय जीवित रहेंगे।

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