Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Sangeet Parijat (संगीत पारिजात:)

191.00

Author Dr. Shri Krishna ‘Jugnu’
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit Text and Hindi Translation
Edition 2018
ISBN 978-8121804202
Pages 157
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0789
Other Dispatched in 3 days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

संगीत पारिजात: (Sangeet Parijat) संगीत मूलतः प्रकृति का स्पन्दन है। चराचर में स्पन्दन के फलस्वरूप जो सुनियोजित स्वरावली निष्पन्न होती है, यह सुरमय संगीतशास्त्र की जननी है। बेदों के मन्त्रों और ऋचाओं के गायन के रूप में संगीत को प्रस्तुति की सुदीर्घ परम्परा प्रमाणित होती हैं। उद्‌गम के साथ ही इसका विकासक्रम निरन्तर रहा और इस क्रम में लोकजनों से लेकर अभिजनों तक ने अपनी अहम् भूमिका का निर्वहन किया है। इस विद्या को उपवेद के रूप में जाना गया है तथा इसका महत्व महाकाव्यों से लेकर पुराणों तक भी द्रष्टव्य है। इनमें छन्दों का उपयोग हुआ है और वे गेय हैं।

इनमें अनेक स्तोत्रों, स्तवनों एवं स्तुतियों के पाठ भी मिलते हैं और ये सभी अनेक तालों, रागों में गेय हैं। यज्ञादि प्रारम्भिक अनुष्ठानों, पूजा-विधानों, पारिवारिक रीति-रिवाजों, यात्रा, युद्ध तक संगीत का महत्त्व समझ में आता है- बिना गीत, कैसी रीत। वाराहोपनिषद् में नादानुसन्धान को योगी के लिए परम साधन स्वीकारा गया है। संगीत पर हमारे यहाँ शताधिक शास्त्रों सहित अनेक ग्रन्थों में संगीत विषयक अध्यायों की प्राप्ति सिद्ध करता है कि यह विद्या लोकप्रिय रही है, जनसामान्य तक इस विद्या का रसिक था। सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में जबकि गुणीजनखानों महत्व दरबारों तक बना हुआ था, अनेक क्षेत्रों में संगीत विषयक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। सोमनाथ, व्यङ्कटमुखी, दामोदर पण्डित, हृदयनारायणदेव, श्रीनिवास सहित पण्डित अहोबल ने संगीत विषयक ग्रन्थों की रचनाकर इस विद्या को नवीन ऊँचाइयाँ दीं।

इनमें भी पण्डित अहोबल का स्थान इस दृष्टि से वरेण्य है कि वह अपने काल के प्रतिनिधि स्वीकारे गए हैं। उनका संगीत पारिजात 500 श्लोकों में निबद्ध ग्रन्थ है। इसमें संगीत की परिभाषा, मार्गी व देशी संगीत, हृदयस्थ 22 नाड़ियों से नाद की उत्पत्ति, श्रुति की विवेचना, स्वरों की जाति, स्वरों के रंग, देवता, नवरस और ग्राम मूच्र्छनाएँ आदि विवेचित हैं। इसके साथ ही वर्ण लक्षणम् व जाति निरूपण अध्यायों में चारों ही वर्षों को स्पष्ट करते हुए 68 अलंकारों का उल्लेख है। जातियों के लक्षण और गमकों के भेद तथा वीणा के तार पर शुद्ध एवं विकृत्त स्वरों के स्थान भी प्रतिपादित किए गए हैं। यद्यपि उन्होंने शुद्ध व विकृत 24 स्वरों के नाम दिए हैं लेकिन वास्तव में ये 7 शुद्ध तथा 5 विकृत स्वरों को ही प्रकट करते हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Sangeet Parijat (संगीत पारिजात:)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×