Caraka Samhita Set of 2 Vols. (चरक संहिता 2 भागो में)
₹892.00
Author | Pt. Kashi Nath Shastri |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit |
Edition | 2019 |
ISBN | 978-8189798550 |
Pages | 2220 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 7 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSS0016 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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चरक संहिता 2 भागो में (Caraka Samhita Set of 2 Vols.) चरक द्वारा भाष्यात्मक प्रतिसंस्कार होने पर अग्निवेशतन्त्र चरकसंहिता के रूप में परिणत हुआ किन्तु उसका मूलरूप भी अग्निवेश तन्त्र के रूप में सुरक्षित रहा और काफी दिनों तक समानान्तर चलता रहा। उपलब्ध चरकसंहिता में जो मध्यकालीन (अग्निवेश तथा दृढबल के बीच का) अंश है वह चरक की देन है। इस काल की प्रसिद्ध घटना है बुद्ध का आविर्भाव तथा बौद्ध दर्शन का प्रसार किन्तु चरकसंहिता में बौद्ध दर्शन का निर्देश तो यत्र तत्र मिलता है किन्तु वह अधिक विकसित अवस्था में नहीं है। इसके अतिरिक्त उसमें ब्राह्मणधर्म की प्रमुखता दृष्टिगोचर होती है क्योंकि सर्वत्र गो, ब्राह्मण, देवता आदि की पूजा का विधान है। अवलोकितेश्वर आदि बौद्ध देवी-देवताओं का उल्लेख नहीं है। शिव, विष्णु, कार्तिकेय आदि देवताओं की पूजा का भी विधान किया गया है।’ ज्वर महेश्वर के कोप से उत्पन्न बतलाया गया है जिसके लिए शिवार्चन का विधान है। भेलसंहिता में भी ऐसा ही है। पुराण की कथा का निर्देश मिलने से ऐसा पता चलता है कि पुराण अस्तित्व में आ चुके थे और लोक में प्रचलित थे। चरकसंहिता का सद्वृत्त धर्मसूत्रों पर आधारित है; चरकसंहिता (वि० ८) में धन्वन्तरि को आहुति देने का निर्देश है। इससे स्पष्ट होता है कि चरक के काल में धन्वन्तरि देवरूप में पूजित थे। इससे यह भी पता चलता है कि आदिसुश्रुत या वृद्धसुश्रुत चरक के बहुत पहले हो चुके थे। संभवतः अग्निवेश आदि के समकालीन हों।
चरक कौन थे ? चरक शब्द से किसी व्यक्तिविशेष का ग्रहण किया जाय या सम्प्रदायविशेष का, इस पर अनेक विद्वानों ने विचार किया है। अधिकांश लोगों का यह मत है कि चरक कृष्णयजुर्वेद की एक शाखा का नाम है और इस सम्प्रदाय के लोग भी चरक कहलाते थे। अतः इस वैदिक शाखा से सम्बन्ध रखनेवाला कोई व्यक्ति चरक संहिता का रचयिता होगा। कुछ लोग इस शब्द का सम्बन्ध बौद्धों की चारिका से जोड़ते हैं’ और इसका अर्थ ‘भ्रमणशील’ करते हैं। अथर्ववेद की एक शाखा का नाम भी ‘वैद्यचारण’ है जो सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। स्यात् उससे आयुर्वेद का विशेष सम्बन्ध हो और चारण से ही चरक की निष्पत्ति हो। यह ध्यान देने की बात है कि चरक में ग्राम्यवास अशस्त बतलाया है तथा परिषदों का आयोजन भी विभिन्न बन्य प्रदेशों में हुआ है।
ऋषियों के भी दो भेद किये गये हैं- शालीन और यायावर। प्रथम प्रकार के ऋषि कुटी बनाकर रहते थे और दूसरे प्रकार के घूमते रहते थे। इससे प्रतीत होता है कि चरक यायावर कोटि के महर्षि थे जो किसी एक स्थान में स्थिर नहीं रहते थे। एक मत यह भी है कि चरक शेषनाग के अवतार थे। इस आधार पर कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वह नागजाति के कोई आचार्य थे और चूंकि पतंजलि भी शेष के अवतार माने जाते ये अतः कुछ लोग चरक का सम्बन्ध पतंजलि से जोड़ते हैं। इसके अतिरिक्त दोनों ही भाष्यकार है एक व्याकरण के और दूसरे आयुर्वेद के। चरक ने स्वयं भी ‘व्याकरण’ ‘शब्द’ का प्रयोग किया है यया ‘ससंग्रहद्व्याकरणस्य’ (च० सू० २९)। इन कारणों से अनेक विद्वानों का कथन है कि पतंजलि ही चरक थे।
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