Kaya Chikitsa Vol. 2 (कायचिकित्सा भाग-2)
₹595.00
Author | Vidyadhar Shukla |
Publisher | Chaukhambha Orientalia |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-93-89665-61-1 |
Pages | 535 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CO0403 |
Other | You Will Get Free Pen Pack of 5 Pics. |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
कायचिकित्सा भाग-2 (Kaya Chikitsa Vol. 2) The present edition is revised, updated, more reader friendly, matching approved syllabus point-to-point book for its readers as per the latest syllabus of CCIM. Topics are explained in simple yet lucid language with sufficient number of tables, charts, flow-charts are provided to explain the topics.
Modern topics (as incorporated in the syllabus) find their designated place in the book. Description of the contents is easy to digest and way of presentation and readability is more clear with two colour. Very useful for Under-graduates, Post-graduates, Research Scholars and Faculties of Ayurveda.
भाग द्वितीय में विषयों को 12 Sections में विभाजित कर विषयवस्तु की प्रस्तुत किया गया है। Section 1 में प्राणवह स्रोतस् का परिचय तथा इस स्रोतस् के अन्तर्गत आने वाली व्याधियों का उल्लेख है। यथाः- 1. कासरोग, 2. श्वासरोग, 3. हिक्कारोग, 4. राजयक्ष्मा, 5. उरःक्षत, 6. पाश्र्वशूल तथा 7. Bronchitis etc. diseases | Section 2 में उदकवह स्रोतस् का परिचय तथा इस स्रोतस् को प्रभावित करने वाली व्याधियों का उल्लेख है। यथा:- 8. शोथ, 9. उदररोग, तथा 10. तृष्णारोग। Section 3 में अन्नवह स्रोतस् का परिचय तथा उससे सम्बन्धित रोगों का उल्लेख है। ययाः 11. अग्निमान्य, 12. अरुचि या अरोचक, 13. अजीर्ण, 14. आनाह आदि रोग, 15. अलसक, 16. विलम्बिका, 17. विसूचिका, 18. छर्दिरोग, 19. ग्रहणौरोग, 20. अम्लपित्त, 21. गुल्मरोग, 22. सूलरोग ‘Colics’, 23. भस्मक या अत्यग्नि (Bilumia, 24. Acid-Peptic disorder, 25. वात्तव्याधि तथा 26. करुस्तम्भ। Section 4 में मांसवह स्रोतस् तथा मेदोवह स्रोतस् का परिचय तथा इन स्रोतसुद्धय से सम्बन्धित रोगों का उल्लेख है। यथा:- 27. गण्डमाला, 28. गलगण्ड, 29. अर्बुद, 30. अपची, 31. प्रमेह, 32 स्थौल्य, तथा 33. काये। Section 5 में अस्थिवह स्रोतस् एवं मज्जावह स्रोतस् का परिचय तथा इनसे सम्बद्ध व्याधियों का वर्णन है। यथाः 34. अस्थिमज्जा विद्रधि आदि। Section 6 में शुक्रवह स्रोतस् का परिचय तथा इसके दुष्टि से उत्पन्न होने वाले रोगों का वर्णन है। यथाः 35. क्लैब्य तथा 36. ध्वजभंग। Section 7 में मूत्रवह स्रोतस् का परिचय तथा इससे सम्बद्ध रोगों का वर्णन है। यथाः 37. मूत्रकृच्छ, 38. मूत्राघात, तथा 39. अश्मरी रोग। Section 8 में पुरीषवह स्रोतस् का परिचय तथा अतिसारादि रोगों का वर्णन है। यथाः 40. अतिसार, 41. प्रवाहिका, 42. अर्थोरोग, 43. पुरोषन कृमि, 44. Irritable Bowel Syndrome, etc. I Section 9 में यौनसंक्रमित रोग तथा यौनमनोगत विकारों का वर्णन है। यथाः: 45. फिरंग ‘Syphilis’, 46. पूयमेह ‘Gonorrhoea’, 47. उपदंश (ध्वजभंग), 48. वंक्षणसन्धीय लसकणिकार्बुद ‘Lymphogranuloma venerium inguinal’, 49. रतिजन्य वंश्क्षणीय कर्णिकार्बुद ‘Granuloma inguinal venereum’, 50. पौनमनोगत विकार योषापस्मार, हिस्टीरिया, अपतन्त्रक, 51. स्मरोन्माद या कामोन्माद, 52. बलात्कार ‘Rape’। Section 10 में मनोवह स्रोतस् का परिचय एवं उससे सम्बन्धित विषयों का उल्लेख है। यथाः 53. मनोविज्ञान, 54. मनोविज्ञान की उपादेयता, 55. मानस रोगों के सामान्य चिकित्सासूत्र, 56 उन्माद, 57. अपस्मार, 58. अत्तत्त्वाभिनिवेश, 59. वृद्धावस्थाजन्य मनोविकार ‘Senile psychosis’, तथा 60, अव्यवस्थितचित्तताः अन्तर आदि। Section 11 में रसायन चिकित्सा ‘Rejuvenation therapy’ का सविस्तार वर्णन किया गया है। तथा Section 12 में वाजीकरण का वर्णन है।
Reviews
There are no reviews yet.