Sanskrit Sahitya Ka Itihas (संस्कृत साहित्येतिहासः)
₹170.00
Author | Hansraj Agrawal |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 272 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0807 |
Other | Dispatched in 3 days |
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संस्कृत साहित्येतिहासः (Sanskrit Sahitya Ka Itihas) संस्कृत-साहित्य विशाल और अनेकांगी हैं। जितने काल तक इसके साहित्य का निर्माण होता रहा है उतने काल तक जगत् में किसी अन्य साहित्य का नहीं। मौलिक मूल्य में यह किसी से दूसरे नम्बर पर नहीं है। इतिहास को लेकर ही संस्कृत-साहित्य त्रुटि-पूर्ण समझा जाता है। राजनीतिक इतिहास के सम्बन्ध से तो यह तथाकथित त्रुटि बिल्कुल भी सिद्ध नहीं होती। राजतरङ्गिणी के ख्यातनामा लेखक कल्हण ने लिखा है कि मैंने राजाओं का इतिहास लिखने के लिए अपने से पहले के ग्यारह इतिहास-ग्रन्थ देखे हैं और मैंने राजकीय लेख-संग्रहालयों में अनेक ऐसे इतिहास-ग्रन्थ देखे हैं जिन्हें कीड़ों ने खा डाला है, अतः अपाठ्य होने के कारण वे पूर्णतया उपयोग में नहीं लाए जा सके हैं। कल्हण के इस कथन से बिल्कुल स्पष्ट है कि संस्कृत में इतिहास ग्रन्थ लिखे जाते थे।
परन्तु यदि साहित्य के इतिहास को लेकर देखें तो कहना पड़ेगा कि कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है जिससे यह दिखाया जा सके कि कभी किसी भी भारतीय भाषा में संस्कृत का इतिहास लिखा गया था। यह कला आधुनिक उपज है और हमारे देश में इसका प्रचार करनेवाले यूरोप निवासी भारोपीय भाषा-शास्त्री हैं। संस्कृत-साहित्य के इतिहास अधिकतर यूरोपीय और अमेरिकन विद्वानों ने ही लिखे हैं। परन्तु यह बात तो नितान्त स्पष्ट है कि विदेशी लोग चाहे कितने बहुज्ञ हों, वे सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, कला और जीवन-दृष्टि की दृष्टि से अत्यन्त भिन्न जाति के साहित्य की अन्तरात्मा की पूर्ण अभिप्रशंसा करने या महरी थाह लेने में असमर्थ ही रहेंगे।
किसी जाति का साहित्य उसकी रूढ़ि परम्परा की, परिवेष्टनों की, भौगोलिक स्थितियों की, जलवायु से सम्बद्ध अवस्थाओं की और राजनैतिक संस्थाओं की संयुक्त प्रसूति होता है। अतः किसी जाति के साहित्य की ठीक-ठीक व्याख्या करना किसी भी विदेशी के लिए दुस्साध्य कार्य है। यह समय है कि स्वयं भारतीय अपने साहित्य के इतिहास-ग्रन्थ लिखते और उसके (अर्थात् साहित्य के) अन्दर छुपी हुई आत्मा का दर्शन स्वयं कराते। यही एक कारण है कि मैं श्रीयुत हंसराज अग्रवाल एम० ए० द्वारा लिखित संस्कृत-साहित्य के इस इतिहास का स्वागत करता हूँ।
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