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Akanksha (आकाड्·क्षा)

170.00

Author Prof. Amarnath Pandey
Publisher Sharda Sanskrit Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2015
ISBN 978-93-81999-78-3
Pages 137
Cover Paper Back
Size 14 x 1 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SSS0010
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Description

आकाड्·क्षा (Akanksha) प्रस्तुत कृति अन्ताराष्ट्रिय ख्यातिलब्धप्रतिष्ठ विद्वान् अमरभारती के अमर आराधक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्राक्तनाचार्य स्वर्गीय अमरनाथ पाण्डेय की आकांक्षा मूर्तरूप में आप सुधीवर्ग के करकमलों में शोभायमान होने जा रही है। आकांक्षा पूज्य प्रो. पाण्डेय जी की समय-समय पर उ‌द्भुत होने वाली अनुभूतियों की श्रृंखलाओं का प्रकृष्ट संग्रह है। इसका वैशिष्ट्य यह है कि यह देवभाषा- राष्ट्रभाषा उभयभाषानिबद्ध काव्यसंग्रह है। इससे स्पष्ट है कि प्रो. पाण्डेय जी दोनों ही भाषाओं के सशक्त एवं सहृदय कवि रहे। यही भाव अंग्रेजी साहित्य पर भी रहा। आकांक्षा प्रायः तीन सौ से अधिक पद्यों से सुशोभित कृति है। ‘अमरशतकम्’ नामक काव्य संग्रह इससे सम्बद्ध होने से ‘सुवर्णसुगन्धिसंयोग’ न्याय भी घटित होता है।

प्रस्तुत काव्य में वेदों, पुराणों, तीर्थों एवं तीर्थराज प्रयाग, काशीत्याद्यनेक विषय जो समय-समय पर कवि के मानस पटल पर उपस्थित होते रहे उन्हें कमनीय पदावली में पद्यबद्ध किया। प्रसंगवश यहां दो पद्यों के माध्यम से आकांक्षा की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत है-

(क) दिव्यधुन्या हिता कापि शोभा
कच्छकन्दर्पसाम्राज्यसम्पद्।
गो प्रचारप्रभासेचनञ्च
भूतये भाति यागप्रमाणम् । पृ.सं. ३८/९४

तीर्थराज प्रयाग के सौन्दर्य का मनोरम वर्णन कवि के शब्दो में –

(ख) सर्वशान्तिः परं मर्म लोके
राजतां श्रेयसे मानवानाम्।
कोऽपि भद्रः क्रतुर्देवतायै
विश्वमाङ्गल्यमूलं विभातु ।।। पृ.सं. १२०/२८८
– भरतवाक्यसदृश विश्वमंगल की कामना।
‘आ नो भद्रा कृतवो यन्तु विश्वतः,

वेदवाक्य भी हमें यही सन्देश देता है। इसी प्रकार सभी पद्यों में गम्भीर भाव यत्र-तत्र-सर्वत्र दृष्टिगत होते हैं। यह कृति दोनों ही भाषाभाषियों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।

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