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Yoga Aur Mansik Swasthya (योग और मांसिक स्वास्थ्य)

212.00

Author Suresh Varnval & Dr. Pranav Pandya
Publisher New Bharatiya Books Corporation
Language English & Hindi
Edition 2022
ISBN 9-7-88187-418658
Pages 231
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code NBBC0055
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Description

योग और मांसिक स्वास्थ्य (Yoga Aur Mansik Swasthya) इक्कीसवीं सदी में मनुष्य ने अनगिन मानसिक समस्याओं के साथ प्रवेश किया है। सूचना तकनीक, संचार क्रान्ति और यांत्रिकता ने मानवीय जीवन में साधन सुविधाओं की भरमार करने के साथ मानसिक स्वास्थ्य में अनेकों संकट भी खड़े किए हैं। मनुष्य का जीवन अपेक्षाकृत अधिक तनाव ग्रस्त एवं विषादपूर्ण हुआ हैमानसिक चिकित्सां की प्रचलित विधियाँ, मनोविश्वेषण के तौर तरीके मिलजुलकर भी इस चुनौती का सामना करने में प्रायः नाकाम रहे हैं। दुनिया के प्रायः हर देश में इनकी नाकामियाँ समझी और स्वीकारी जा चुकी हैं। ऐसे में चिन्तित विशेषज्ञों ने विश्व भर के पुरातन ज्ञान भण्डार में अपनी ढूँढ-खोज शुरू की है। और उनकी दृष्टि भारत देश के प्राचीन ऋषियों द्वारा अन्वेषित योग विज्ञान पर जा टिकी है। यहीं उन्हें आज की मानसिक समस्याओं के सार्थक और सक्षम समाधान अंकुरित होते हुए दिखाई पड़ रहे हैं।

इस सम्बन्ध में मानवीय मन के विशेषज्ञ कार्ल रोजर्स ने बहुतायत में शोध कार्य किया है। अपनी दीर्घ कालीन अनुसन्धान प्रक्रिया से वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संकट के प्रश्न कंटक को निकालने के लिए मानवीय प्रकृति की संरचना व उसकी क्रियाविधि का समग्र ज्ञान चाहिए। तभी उसमें आयी विकृति की पहचान व निदान सम्भव है। कार्ल रोजर्स के अनुसार यह समस्त विज्ञान योग शास्त्रों में पहले से ही उपलब्ध है। समस्त योग शास्त्रों में उन्होंने महर्षि पतंजलि प्रणीत योगसूत्र में मनोचिकित्सा की सैद्धान्तिक एवं नैदानिक समग्रता के अपूर्व समन्वय को अनुभव किया है। इसी के आधार पर उन्होंने अपनी नॉन- डायरेक्टिव चिकित्साविधि भी विकसित की है।

सुविख्यात मनीषी जय स्मिथ के अनुसार प्रायः सभी मानसिक समस्याएँ मानवीय चेतना को विखण्डित करने वाली दरारों और इसमें उत्पन्न होने वाली ग्रन्थियों के कारण जन्मती व पनपती हैं। स्मिथ इन सभी का मूल कारण अहं को मानते हैं। उनके अनुसार यह अहंता ही है, जो एक ओर हमें उच्चतर चेतना से अलग करती है और दूसरी ओर हमको अपने साथी मनुष्यों के सामाजिक विस्तार से दूर करती है। स्मिथ के अनुसार योग विज्ञान की साधनात्मक प्रक्रियाएँ ही एक मात्र सार्थक एवं समर्थ समाधान हैं। इसी से मनुष्य की बिखरी और बंटी हुई चेतना फिर से अपनी एकात्मकता व सम्पूर्णता प्राप्त करती है। फिर से उसे अपना खोया हुआ स्वास्थ्य व सौन्दर्य मिलता है।

मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य संकट का हल ढूँढने के लिए आधुनिक समय में जितने भी अनुसन्धान कार्य हुए हैं और हो रहे हैं, उन सभी का सार निष्कर्ष यही है। प्रायः सभी विशेषज्ञों ने एक स्वर से यही प्रामाणित किया है कि मानसिक स्वास्थ्य के सभी अर्थ योग विज्ञान में निहित है। कतिपय मनोविज्ञानियों ने मानसिक स्वास्थ्य के अर्थ को अपने शोध निष्कर्षों के आधार पर स्पष्ट भी किया है। स्ट्रेंज के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य सीखा गया वह व्यवहार है, जो व्यक्ति को सामाजिक रूप से अनुकूल बनाता है। और जिसकी वजह से व्यक्ति अपनी जिन्दगी की सभी समस्याओं से जूझने में सक्षम होता है। इस मानसिक स्वास्थ्य में आत्म सम्मान, अपनी अन्तर्शक्तियों का अनुभव, सभी से सार्थक एवं उत्तम सम्बन्ध बनाए रखने की क्षमता एवं मनोवैज्ञानिक श्रेष्ठता जैसे कई आयाम सम्मिलित होते हैं।

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