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Shri Malla Puranam (श्रीमल्लपुराणम् अर्थात् व्यायामविज्ञान)

191.00

Author Dr. Shri Krishan Jugnu
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2021
ISBN -
Pages 162
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0159
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Description

Shri Malla Puranam (श्रीमल्लपुराणम् अर्थात् व्यायामविज्ञान) मल्लपुराण का एक जीवन्त साक्ष्य है जिसमें मल्लक्रीड़ा के अनुरंजन के साथ-साथ मल्लों को तैयार करने लिए के विविध उपायों को भेदों लक्षणों के रूप में समझाया गया है। नारद और ब्रह्मा संवाद की पीठिका के बाद, श्रीकृष्ण और सोमेश्वर के संवाद के रूप में इस ग्रन्थ को लिखा गया है। यह मोढ़ेरा स्थान का माहात्म्य भी है। मोढ़ेरा वर्तमान में उत्तर गुजरात में विद्यमान है और चालुक्य स्थापत्य के अप्रतिम उदाहरण के लिए जाना जाता है। सुन्दरतम रचनात्मक कुण्ड, कलात्मक सूर्य मन्दिर के लिए मोढ़ेरा की ख्याति रही है। वहाँ से निकले मोढ़ या मोड़ ब्राह्मणों ने मल्लविद्या का सुन्दर, सुलाघव प्रदर्शन अनेकत्र किया है। वे ज्येष्ठी मल्ल के रूप में जाने गए हैं। यह ग्रन्थ उनकी कला को परिभाषित करता है।

ऐसे में यह उनका जातीय ग्रन्थ है और इसका रचनाकाल और रचना स्थल मोढ़ेरा और उसका वैभवकाल, 12वीं-13वीं सदी निर्धारित किया जा सकता है लेकिन यह ग्रन्थ 15वीं सदी में सामने आया होगा। इसमें प्रयुक्त कतिपय शब्द वर्तमान में गुजरात, मालवा और राजस्थान में प्रचलित है जहाँ कि यह समाज फैला हुआ है। यथा- लाट (6, 1), टाकण (6, 3, 5), फरकणे (6, 5), खण्ड (9, 51), मेलयित्वा (12, 30), मुहुडकेन (16, 4), चडकी (17, 33), ढोकर (17, 39), लाग (6, 1, 5; 9, 2; 10, 11), उत्थापण (6, 3), आखडक (6, 15), वलन (9, 11), गोणितक (11, 8), चावयित्वा (11, 30), हरित (17, 6), करडकी (17, 33), परिणामप्रद (9, 38) स्फुटं हार (15, 4) इत्यादि। ये गुजरात में लौकिक रूप से मल्लों की भाषा में भी प्रयुक्त होते रहे हैं। चूंकि इस पुराण में वैष्णव प्रभाव दिखाई देता है जो गुजरात में 15वीं सदी में पुष्टिमार्ग के प्रसार के फलस्वरूप दिखाई देता है। इस पुराण में लिम्बजा देवी को श्रीकृष्ण की शक्ति बताया गया है। ऐसे में यह उस प्रभाव को लिए हुए है।

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