Brihad Dharma Puranam (बृहद्धर्मपुराणम्)
₹786.00
Author | S.N. Khandenwale |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-81-7080-434-5 |
Pages | 462 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 3 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CH00015 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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बृहद्धर्मपुराणम् (Brihad Dharma Puranam) महर्षि वेदव्यास प्रणीत उपपुराण बृहद्धर्मपुराण को उपपुराणों में अन्यतम माना गया है। अठारह पुराणों के साथ ही अठारह उपपुराणों का भी प्रणयन महर्षि वेदव्यास ने किया था, यह कहा जाता है। पुराणों की विषयवस्तु जितनी अध्यात्मपरक, साधनापरक तथा तत्वपूर्ण है, उसी की झलक उपपुराणों में भी मिलती है। उपपुराण भी पुराणों की ही भावना से ओतप्रोत हैं। कुछ अंश में तो यह प्रतीत होता है कि उपपुराणों का उत्कर्ष पुराणों के ही समान है। बृहद्धर्मपुराण में पुराणों के आधार भूत सभी तत्वों तथा उपक्रमों का समावेश सम्यक् तया संक्षिप्त रूप से किया गया है। इसकी विचित्रता यह है कि इस पुराण के समापन के साथ-साथ उसी समापन स्थल पर इसमें राजा वेण द्वारा प्रवर्तित किये गये जातिसंकर प्रसंग को भी जोड़ दिया गया है, जो अन्य पुराणों में नहीं मिलता। इस प्रसंग के अनुसार यह विदित होता है कि संकर जातियों की उत्पत्ति के मूल कारण राजा वेण थे। उन्होंने ही जातिगत संकर प्रथा का प्रारम्भ कराया था। तदनन्तर यह प्रसंग मिलता है कि राजा वेण के उत्तराधिकारी ने अपनी उदात्त वृत्ति का परिचय देते हुये, उस संकर जाति के लिये उपयुक्त सामाजिक व्यवस्था का विधान किया था तथा उनके जीविकार्थ कर्त्तव्य कर्म की भी व्यवस्था किया था। यह एक अलौकिक प्रसंग इस उपपुराण में प्राप्त होता है।
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