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Hanumad Yag Rahasyam Athartha Hanumad Yag Paddhati (हनुमद्याग रहस्यम् अर्थात हनुमद्याग पद्धतिः)

120.00

Author Pt. Ashok Kumar Gaud
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2013
ISBN -
Pages 448
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0313
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Description

हनुमद्याग रहस्यम् अर्थात हनुमद्याग पद्धतिः (Hanumad Yag Rahasyam) इस पवित्र भारतभूमि पर सनातनधर्म में अनेकानेक उपास्य देव हैं। स्मार्तोपासना में पञ्चदेवोंपासना प्रसिद्ध है। हिन्दूधर्म में पञ्चदेवोपासना में शिव, विष्णु, गणेश, सूर्य और दुर्गा को ही मान्यता प्राप्त हुई है। किन्तु यदि ब्रह्मचर्य-पालन के द्वारा अपने को अपार शक्तिशाली व भगवान् श्रीराम का सेवक बनाने वाले मात्र केवल हनुमानजी ही हैं। क्योंकि उनका प्रादुर्भाव ग्यारहवें रुद्र के रूप में ही हुआ है। हमारे वैदिक शास्त्रों का कथन है कि हनुमानजी के रूप में भगवान् शिवजी ने संसार के कल्याणार्थ इस रूप को ग्रहण किया।

हनुमानजी साक्षात् शिवावतार हैं, भगवान् शिव परममंगलमय हैं, क्योंकि शिव शब्द का अर्थ ही परममंगल है। हनुमानजी में सदाशिव का अनुग्रह, हिरण्यगर्भ की सत्यसंकल्पता, विष्णु की पालनी शक्ति, ब्रह्मा की समता, रुद्र की संहार शक्ति एवं अहंकार से मुक्त ब्रह्मभाव अत्यन्त स्फुट रूप से दृश्यमान है। हनुमान शब्द की व्युत्पत्ति ‘हनु’ शब्द से ‘मतुप्’ प्रत्यय होने पर ही हनुमान शब्द निष्पन्न होता है। हन् + उन् हनु। स्त्रीत्वपक्षे ऊड्-हन् + ऊङ्-हनू+मतुप्=हनुमत् अथवा हनूमत्-हनुमान् या हनूमान् शब्द निष्पन्न होता है।

हनुमानजी केवल रामोपासकों के ही देवता नहीं हैं, वे निगमागम पौराणिक तथा तान्त्रिक देव भी हैं। जिनमें दक्षिणमार्गीय तन्त्रोपासना और वाममार्गीय तांत्रिक उपासना भी हैं, इसके साथ ही साथ ये लोकदेवता अथवा जनदेवता भी हैं। हनुमानजी में अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठों सिद्धियाँ सम्यक्तया प्रतिष्ठित थी और यही कारण है कि हनुमानजी के आचरण में प्रत्येक सिद्धि स्पष्ट दृष्टिगत होती है तथा इनमें महापद्म, पद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील एवं खर्व ये नौ निधियाँ विद्यमान थीं।

हमारे शास्त्रकारों ने हनुमानजी को ‘संकटहरण’ के नाम की संज्ञा से सुशोभित किया है, इसका मुख्य कारण यह है कि जो प्राणी इनकी आराधना सदैव करते हैं, उनके ऊपर किसी भी प्रकार का कोई संकट नहीं आता है। स्वयं भगवान् श्रीराम ने इनके विषय में लक्ष्मण से इस प्रकार कहा था-

नूनं व्याकरणं कृत्स्त्रमनेन बहुधा श्रुतम्।
बहु व्याहरतानेन न किंचिदपशब्दितम्॥ (वा. रा. ४।३।२६)

हनुमानजी से सम्बन्धित इस ‘हनुमद्याग-रहस्यम्’ नामक पुस्तक का निर्माण किया है, इस पुस्तक में हनुमानजी के याग की सम्पूर्ण विधि सरलता से प्रस्तुत की है।

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