108 Upnishad Set of 3 Vols. (108 उपनिषद 3 भागो में साधना खण्ड, ज्ञान खण्ड, ब्रह्म विद्या खण्ड)
₹425.00
Author | Pt. Shri Ram Sharma Acharya |
Publisher | Sanskriti Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 1522 |
Cover | Hard Cover |
Size | 12 x 5 x 17 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SS0013 |
Other | Dispatched in 3 days |
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108 उपनिषद 3 भागो में (108 Upnishad Set of 3 Vols.) वेद भारतीय ज्ञान विज्ञान के उद्गम केन्द्र हैं। उनके महत्त्वपूर्ण स्थलों का विस्तार उपनिषदों में हुआ है। आत्मविद्या का, ब्रह्मविद्या के रहस्य का उपनिषदों में भली-भाँति विवेचन हुआ है। उपनिषद् शब्द का अर्थ भी ब्रह्मविद्या ही है। वेद की यदि एक पुरुष के रूप में कल्पना की जाय तो उपनिषदें उसका शिर माननी पड़ेंगी। ‘उप’ और ‘नि’ उपसर्ग हैं। ‘सद्’ धातु ‘गति’ के अर्थ में प्रयुक्त होती है। ज्ञान, गमन और प्राप्ति ‘गति’ के तीन अर्थ हैं। यहाँ प्राप्ति अर्थ उपयुक्त है। ‘उपसामीप्येन, नि-नितरां, प्राप्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद्।’ अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादात्म्य सम्बन्ध प्राप्त किया जाता है, वह ‘उपनिषद’ है।
अष्टाध्यायी १-४-६६ में ‘जीविकोपनिषदावौपम्ये उपनिषद’ कृत्य ‘गत’ उपनिषद् शब्द परोक्ष या रहस्य के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्धकाल के गुप्त प्रयोगों की चर्चा में ‘औपनिषद्’ प्रयोग शब्द व्यवहृत हुआ है। इससे यह भी प्रकट होता है कि उपनिषद् का तात्पर्य ‘रहस्य’ भी है। परमात्मा की प्राप्ति का रहस्यमय ‘ज्ञान’, इस प्रकार उपनिषद् शब्द का तात्पर्य समझना ठीक होगा। ब्रह्मविद्या का यही प्रयोजन है। इसलिए ब्रह्म विद्या को उपनिषद् कहा जाता है। उपनिषदों में इसी विद्या का वर्णन हुआ है।
‘उप’ + ‘नि’ दो उपसर्गपूर्वक ‘सद्’ धातु से ‘क्विप’ प्रत्यय करने पर ‘उपनिषद्’ शब्द बनता है। ‘सद्’ तीन अर्थो में प्रयुक्त होती है- १ विशरण (विनाश) २ गति (ज्ञान और प्राप्ति) ३ अवसादन (शिथिल करना) इस आधार पर उपनिषद् शब्द का यह अर्थ बनता है- जो पाप तापों का नाश करे, उपनिषद् है।
अमर कोष में आता है- धर्मे रहस्युपनिषत् स्यात्’ अर्थात् उपनिषद् शब्द गूढ़ धर्म एवं रहस्य के अर्थ में प्रयुक्त होता है। उपनिषद् शब्द का एक और भी अर्थ है, उप (व्यवधान रहित) नि (सम्पूर्ण) षद् (ज्ञान)। अर्थात् व्यवधान रहित, सर्वाङ्गपूर्ण सम्पूर्ण ज्ञान। उपनिषदों में जो ज्ञान अभिप्रेत है, वह निस्सन्देह ऐसा ही है, उसे सब दृष्टियों से परिपूर्ण एवं सत्य ज्ञान ही कहा जा सकता है। भारती तत्त्वज्ञान का जितना उत्कृष्ट विवेचन उपनिषदों में मिलता है उतना अन्यत्र कहीं नहीं है। संसार के सभी तत्त्वदर्शियों के लिए यह ज्ञान अमृतोपम होता रहा है। जिसने इसका जितना ही अवगाहन किया है, उसे उतना ही आनन्द मिला है।
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