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Kundali Dwara Aayu Aur Rog Gyan Evam Nidan (कुण्डली द्वारा आयु और रोग ज्ञान एवं निदान)

255.00

Author Dr. Surkant Jha
Publisher Chaukhamba Sanskrit Series Office
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2011
ISBN 978-81-218-0280-6
Pages 255
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0287
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Description

कुण्डली द्वारा आयु और रोग ज्ञान एवं निदान (Kundali Dwara Aayu Aur Rog Gyan Evam Nidan) प्रायः सभी लोगों को विदित है कि भारतीय ज्यौतिषशास्त्र आज विश्वजनमानस का अभिन्न अंग-सा हो गया है। उस ज्योतिषशास्त्र के प्रमुख तीन अंग हैं- सिद्धान्त, संहिता एवं होरा। इन स्कन्धों में होरा स्कन्ध के अन्तर्गत जातक, ताजिक, मुहूर्त एवं प्रश्नज्योतिष का भी समन्वय है। इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है।

१. सिद्धान्त स्कन्ध -जिस स्कन्ध में त्रुटि से लेकर प्रलय पर्यन्त की कालगणना, सौर, सावन, चान्द्र, नाक्षत्रादि कालमानों का भेद, ग्रहों की गति एवं स्थिति का परिचय, पृथ्वी एवं नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन, वेधादि कार्यों की सिद्धि हेतु यन्त्रादि वर्णन, गणित प्रक्रिया का उपपत्ति सहित विवेचनादि होता है, उसे ‘सिद्धान्त स्कन्ध’ कहते हैं।

२. संहिता स्कन्ध – संहितास्कन्ध में ग्रहादिचारफल, वायसविरूत, शिवारूत, मृगचेष्टित, श्वचेष्टित, अश्वचेष्टित, हस्तिचेष्टित, शकुन, वायु, वृष्टि वर्णन एवं इन सबके संसार पर होने वाले समष्टिगत फल का वर्णन दिया रहता है।

३. होरा स्कन्ध-होरा स्कन्ध मुख्य रूप से व्यष्टिपरक फलादेश से सम्बन्धित है। इसमें जातकं विशेष के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का और उनके शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है।

होरा स्कन्ध का महत्व – ज्योतिषशास्त्र के तीनों स्कन्ध परस्पर पूरक का कार्य करते हैं। संहिता एवं होरा स्कन्ध, सिद्धान्तस्कन्ध पर आधारित है। संहिता एवं होरास्कन्ध के बिना सिद्धान्तस्कन्ध भी अपूर्ण है। इसी प्रकार संहिता एंव होरा भी परस्पर आश्रित है; परन्तु जब व्यष्टिपरक फल अर्थात् जातक विशेष के बारे में विचार किया जाता है तब अन्य दोनों स्कन्धों की अपेक्षा होरास्कन्ध महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इस स्कन्ध में जन्मकालीन ग्रहस्थिति से व्यक्ति विशेष के सन्दर्भ में जीवन सम्बन्धी शुभाशुभ फल का विचार किया जाता है। वस्तुतः किस समय में उत्पन्न प्राणियों को शरीर, रूप, शील, धन, पुत्र, व्यवसाय, विद्या, भाग्य आदि से सुख या दुःख प्राप्त होगा? किसके लिए कौन-सा समय उपयुक्त या अनुपयुक्त रहेगा? कौन व्यक्ति अपने जीवन में कितना सफल होगा? इन सभी विषयों का ज्ञान होरास्कन्ध से ही सम्भव है।

प्रस्तुत पुस्तक ‘आयु रोग विचार एवं निदान’ होराशास्त्र के उन्हीं विषयों पर आधारित है, जिसमें जन्म कुण्डली द्वारा जातक की आयु को होने वाले रोगों का विचार सरल व सहज रूप से सभी पक्षों का ध्यान में रखकर किया गया है। प्रयास किया गया है कि उक्त विषयों से सम्बन्धित अपेक्षित सामग्री एक ही जगह पाठक को सुलभ हो तथा पाठक उन सामग्रियों का उपयोग अपने अपेक्षित हित साधन से सरलता से कर सकें। इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर अब उक्त विषयों को समझने-समझाने में सहायक कुछ मौलिक विषयों की चर्चा यहाँ करना बाल पाठकों की दृष्टि से कम से कम अनुचित तो नहीं ही होगा।

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