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Dasha Phala Darpan (दशाफलदर्पणः)

382.00

Author Hari Shankar Pathak
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN -
Pages 559
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0225
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Description

दशाफलदर्पणः (Dasha Phala Darpan) यह एक बृहद् कलेवर वाला ग्रन्थ है। इसमें लगभग ३१ सौ श्लोक हैं, जो पं. श्रीनिवास शर्मा के धैर्य लेखन तथा कवित्वशक्ति का परिचायक है। आधुनिक काल की रचनाओं में दशा-विषयक यह एक प्रतिनिधिग्रन्थ कहा जा सकता है। विद्वान् लेखक ने इस ग्रन्थ में ४२ प्रकार की दशाओं का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्तशोत्तरी दशा के दो भेदों का, अष्टोत्तरी दशा के दो भेदों तथा कालदशा के तीन भेदों का भी उल्लेख किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि लेखक ने अथक श्रम करके इस ग्रन्थ के माध्यम से पाठकों को दशासम्बन्धी पूर्ण एवं प्रामाणिक सामग्री सुलभ कराने का संकल्प लिया है। लेखक का यह श्रम आज तथा आगे आने वाले समय में दशासम्बन्धी एक मानक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित होगा।

इस ग्रन्थ में कुल १२ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय परिचयात्मक है, जिसका नाम ‘दशाप्रयोजनाध्याय’ रखा है, इसमें कुल १५ श्लोक है। द्वितीय अध्याय ‘दशानयनाध्याय’ है। इसमें दशासाधन की विधि प्रदर्शित की गई है। इस अध्याय में कुल २६३ श्लोक है। तृतीय अध्याय ‘दशाफलाध्याय’ नाम से है। इसमें ग्रहों की अवस्था तथा उनकी भावों में स्थिति के अनुसार दशाफल का निरूपण किया गया है। इसमें कुल ४३८ श्लोक हैं। चतुर्थ अध्याय ‘अन्तर्दशाफलविचार’ नामक है। यह नाम कुछ भ्रामक है। इसमें सूर्यादि ग्रहों की आरम्भ मध्य-अन्त्य की स्थिति में भावगत राशियों के अनुसार महादशा का फल निरूपित किया गया है। इस अध्याय में कुल ७१४ श्लोक हैं। पञ्चम अध्याय ‘अन्तर्दशाध्याय’ नामक है। इस अध्याय में ग्रहों की पाँच प्रकार की भुक्तियों का उल्लेख करते हुए ग्रहों की अन्तर्दशाओं के फलक कहे गये हैं। इस अध्याय में कुल ९०५ श्लोक हैं। षष्ठ अध्याय ‘उपदशा’ नाम से है। इस अध्याय में ग्रहों के सौम्य-क्रूर सम्बन्धों के अनुसार अन्तर्दशा तथा प्रत्यन्तर (उपदशा) का फल कहा गया है। इस अध्याय में कुल १७३ श्लोक हैं।

सप्तम अध्याय ‘सूक्ष्मदशाफलाध्याय’ नामक है। इस अध्याय में सूक्ष्म दशा अर्थात् प्रति-प्रत्यन्तर का फल कहा गया है। साथ ही ग्रहों की नवांशगत राशि के अनुसार भी फलकथन किया गया है। इस अध्याय में कुल ८८ श्लोक हैं। आठवाँ ‘प्राणदशाध्याय’ है। इस अध्याय में अत्यन्त सूक्ष्म प्राणदशा का फल-निरूपण किया गया है। इसमें कारक मारक, शुभ-अशुभ भावों, नवांशों आदि की स्थिति के अनुसार सूक्ष्म फलादेश किया गया है। इसमें कुल ९९ श्लोक है। नवम अध्याय ‘अष्टोत्तरी दशा’ का है। इसमें अष्टोत्तरी दशा के अनुसार दशा एवं अन्तर्दशा का फल कहा गया है। इसमें कुल श्लोकसंख्या ७० है। दशम अध्याय योगिनी दशा का है। इसमें आठों योगिनियों की महादशाओं एवं अन्तर्दशाओं का फल कहा गया है, कुल श्लोक संख्या १४४ है। ग्यारहवाँ अध्याय चर स्थिरादि दशाओं का है। इसमें चरपर्या एवं स्थिर दशाओं के परिणाम कहे गये है। कुल श्लोकसंख्या ९७ है। अन्तिम बारहवाँ अध्याय कालचक्रदशा है। कालचक्रदशा के अनुसार सभी ग्रहों के दशाफल का निरूपण कुल १२३ श्लोकों में किया गया है। इस प्रकार बारह अध्यायों में ३१२९ श्लोकों में ग्रन्थ को पूर्णता प्रदान की गई है। ग्रन्थ सरल श्लोकों में निबद्ध होने के कारण सरलतया बोधगम्य है।

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