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Nitishatakam (श्रीभर्तृ हरिविरचितम् नीतिशतकम्)

85.00

Author Janardan Shastri Pandey
Publisher Motilal Banarasi Das
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-81-208-2689-2
Pages 100
Cover Paper Back
Size 12 x 0.5 x 18 (l x w x h)
Weight
Item Code MLBD0046
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Description

श्रीभर्तृ हरिविरचितम् नीतिशतकम् (Nitishatakam) संस्कृत वाङ्मय के प्रणेताओं में भर्तृहरि का नाम सुविख्यात है। इनके द्वारा प्रणीत शतकत्रय-नीतिशतक, श्रृंगारशतक और वैराग्यशतक-चिरकाल से इस वाङ्मय की शोभा बढ़ा रहा है। भर्तृहरि की रचना संस्कृत वाङ्मय के उत्कृष्ट रूप का निदर्शन करती है, गागर में सागर भरने की जो विलक्षण क्षमता सस्कृत भाषा में है वह इनकी रचना में पूर्णरूप से सार्थक हुई है। इनके इस नीतिशतक को नौतिविषयक सुभाषितों का संग्रह कहा जा सकता है। यह मुक्तक काव्य है। मुक्तक का लक्षण अग्निपुराण में इस प्रकार है- “मुक्तक श्लोक एकैकश्चमत्कारक्षम सताम्”

अर्थात् मुक्तक वह काव्य है जिसका प्रत्येक श्लोक स्वतंत्र रूप से अपने सर्वांगीण अर्थप्रकाशन में पूर्ण समर्थ होकर सहदयों के हृदय में चमत्कार का आधायक होता है। इसके एक पद्म का दूसरे पद्य से कोई संबन्ध नहीं होता। भर्तृहरि के तीनों शतकों में केवल प्रकरण की दृष्टि से श्रृंगारिक पद्म श्रृगारशतक में वैराग्यविषयक वैराग्यशतक में तथा नीतिविषयक नीतिशतक में रखे गये हैं। केवल प्रकरणगत एकता का ही इनमें परस्पर संबन्ध है, अन्यथा इनका प्रत्येक पद्म अपने में स्वतः पूर्ण है और अकेला ही रस-चर्वण की सामर्थ्य रखता है। यह असन्दिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि नीतिरत्न, नीतिप्रदीप, नीतिसार, चाणक्यनीति आदि नीतिविषयक जितने भी सूक्त्यात्मक पद्म-संग्रह हैं उन सब में भर्तृहरि का नीतिशतक सर्वश्रेष्ठ है।

यद्यपि नीतिशतक के कई संस्करण मुद्रित हुए हैं किन्तु प्रस्तुत संस्करण को इस दृष्टि से तैयार किया गया है कि जिससे एक बार के पढ़ने से ही प्रत्येक श्लोक का उचित संस्कार पाठक के हृदय पर अंकित हो जाय। क्योंकि श्लोक के बाद अन्वय, फिर अन्वयक्रम से ही प्रत्येक पद का हिन्दी में अर्थ, तब संस्कृत में व्याख्या फिर पूरे श्लोक का संस्कृत में भावार्थ और हिन्दी में भाषार्थ इस प्रकार एक ही बार के पढ़ने में प्रत्येक श्लोक की छः आवृत्तियाँ हो जाती हैं।

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