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Swatantrata Sangram Aur Sanskrit (स्वतंत्रता संग्राम और संस्कृत)

480.00

Author Radha Vallabh Tripathi
Publisher New Bharatiya Books Corporation
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2022
ISBN 978-81-8315-498-7
Pages 213
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code NBBC000046
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Description

स्वतंत्रता संग्राम और संस्कृत (Swatantrata Sangram Aur Sanskrit) संस्कृत साहित्य तथा भारतीय परम्पराओं के मर्मज्ञ अध्येता प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपनी इस पुस्तक में अन्वेषण और तथ्यों के आधार पर भारतीय नवजागरण तथा स्वतन्त्रता संग्राम में संस्कृत की अद्वितीय और महती भूमिका पर सप्रमाण विचार किया गया है। औपनिवेशिक शासन के समय संस्कृत के विषय में यह मिथ्या धारणा बहुप्रचारित हुई कि संस्कृत केवल धर्म और कर्मकाण्ड की भाषा है। इसके साथ ही संस्कृत साहित्य को अतीत की धरोहर के रूप प्रस्तुत करते हुए उसके सतत विकास और सर्जनात्मक स्फूर्ति को भी अनदेखा किया गया।

इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में नवजागरण और संस्कृत, १८५७ की क्रान्ति और संस्कृत, स्वाधीनता संग्राम और संस्कृत के पण्डित, स्वाधीनता संग्राम और संस्कृत पत्रकारिता तथा स्वाधीनता संग्राम और संस्कृत के कवि इन शीर्षकों से पाँच अध्यायों में संस्कृत की उपेक्षित और विस्मृतप्राय प्राणवान् परम्पराओं का पुनराविष्कार किया गया है। द्वितीय खण्ड में रणभेरी शीर्षक के अन्तर्गत स्वतन्त्रता सङ्ग्राम के दौर में संस्कृत में लिखे गये क्रान्ति-गीतों और राष्ट्रीय भावधारा की कविताओं का चयन प्रस्तुत किया गया है।

उन्नीसवीं शताब्दी में संस्कृत के माध्यम से स्फूर्त हुआ नवजागरण का भाव स्वातंत्र्य चेतना में ढलता गया। तारानाथ तर्कवाचस्पति, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, आनंदराम बरुवा, बाल गंगाधर तिलक, श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, त्र्यम्बक भण्डारकर, परशुराम नारायण अप्पासाहेब पाटणकर आदि संस्कृत के मनीषी इस नवजागरण तथा स्वतन्त्रतासंग्राम के पुरोधा बने। स्वतन्त्रता के समर में संस्कृत पत्रिकाओं का अपूर्व योगदान रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में संस्कृत में सैंकड़ों की संख्या में नई पत्रिकाएँ निकली, जिन्होंने देश में क्रान्ति की अलख जगाई। इन पत्रिकाओं में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लेख और कविताएँ छपे, इनमें से अनेक को प्रतिबन्धित किया गया तथा उनके सम्पादकों और प्रकाशकों को जेल में डाला गया। इन सबका का तथ्यात्मक ऐतिहासिक विवरण यथासम्भव इस पुस्तक में दिया गया है।

इस पुस्तक के द्वितीय खण्ड में रणमेरी शीर्षक से स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व संस्कृत में आजादी की लड़ाई के समय लिखे गये क्रान्तिगीतों तथा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह का स्वर मुखरित करने वाले काव्यों का एक चयन प्रस्तुत किया गया है। इन गीतों तथा काव्यों के प्रणेता सनी कवि स्वयं भी किसी न किसी रूप में स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित थे, विदेशी शासन का विरोध करने के कारण उन्हें यातनाएँ सहनीं पड़ीं। स्वतन्त्रता संग्राम के कतिपय अछूते पक्ष उजागर करने वाली यह पुस्तक संस्कृत के सत्य का एक साक्षात्कार है।

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