Simant Naitikta (सीमांत नैतिकता : एक उत्तर आधुनिक विमर्श)
₹440.00
Author | Ramesh Chandra Sinha |
Publisher | New Bharatiya Book Corporation |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2023 |
ISBN | 978-81-8315-516-8 |
Pages | 167 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | NBBC0066 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सीमांत नैतिकता (Simant Naitikta) भारतीय दार्शनिक क्रिया और विशेषकर भारतीय नीति दर्शन, प्राचीन भारतीय मूल्यों को आत्मसात करके नए नैतिक विचारों की सर्जना करते रहे हैं। सीमान्त नैतिकता एक नवीन अवधारणा हैद्य प्रस्तुत पुस्तक एक स्वतंत्र चिंतन का परिणाम है। सीमान्त नैतिकता की अवधारणा कार्ल मार्क्स के सर्वहारा से भिन्न है। सीमान्त सांस्कृतिक संकल्पना है जबकि सर्वहारा एक वर्ग है जो आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े हुए मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। ‘सीमान्त’ भी ऐसे वर्ग की अभिव्यक्ति है जो हाशिए पर स्थित है तथा समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित नहीं हैं। किन्तु लेखक की मान्यता है कि यह अवधारणा केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से जुड़ी अवधारणा नहीं है बल्कि ‘सीमान्त’ अपने अंतर्गत जाति, रंग एवं लिंग आधारित सभी प्रकार की विसंगतियों को समाहित करता है।
इतिहासकारों ने हाशिए पर स्थित व्यक्तियों के लिए सबअल्टर्न शब्द का प्रयोग किया है। किन्तु ‘सबअल्टर्न सर्व साधारण से सम्बंधित तथ्यों एवं घटनाओं का विवरण है। ग्रीक दार्शनिक अरस्तु ने तार्किक प्रतिज्ञप्तियों के संबंधों को बताने के लिए सबअल्टर्न शब्द का प्रयोग किया थाद्यउनका मानना था कि यदि पूर्णव्यापी प्रतिज्ञप्ति सत्य है त्तो अंशव्यापी भी सत्य होगाद्य किन्तु यदि अंशव्यापी सत्य होगा तो पूर्णव्यापी के भी सत्य होने की बाध्यता नहीं होती हैद्यलेखक ने अरस्तु के इस तार्किक प्रतिज्ञप्तियों के संबंधों के आलोक में सामाजिक परिस्थियों को सीमान्त नैतिकता के द्वारा व्याख्यायित किया है। सीमान्त एक व्यापक संकल्पना है। सीमान्त नैतिकता को भी हम दो तरह से समझ सकते है एक सीमांत वर्ग की नैतिकता और दूसरी अभिजात्य वर्ग की नैतिकता।
लेखक की मान्यता है कि अभिजात्य वर्ग की नैतिकता एवं सीमान्त वर्ग की नैतिकता में अंतर हैद्य वस्तुतः अभिजात्य वर्ग मूल्यों को निर्मित करते हैं। सीमान्त, संख्या में अधिक है किन्तु वे मूल्यों का निर्माण नहीं करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनकी सीमाओं को रेखांकित किया गया है। मूल्य निर्माण में किसी विशेष वर्ग का एकाधिकार है। यह पुस्तक एक पृष्ठभूमि तैयार करती है जिससे सीमान्तक मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकेंद्यसीमान्त नैतिकिता का विशेष आग्रह है कि अभिजात्य वर्ग उन व्यक्तियों को मुख्यधारा में सम्मिलित करने की चेष्ठा करें जो हाशिए पर हैं।
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