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Shrimad Garg Samhita (श्रीमद्गर्गसंहिता)

540.00

Author Pt. Devisahay Sharma
Publisher Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2018
ISBN -
Pages 430
Cover Hard Cover
Size 30 x 4 x 15 (l x w x h)
Weight
Item Code KH0061
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Description

श्रीमद्गर्गसंहिता (Shrimad Garg Samhita)

बालं नवीनशतपत्रविशालनेत्रम्बिम्बाधरं सजलमेघरुचि मनोज्ञम् । मन्दस्मितंमधुरसुन्दरमन्द्रयानं श्रीनन्दनन्दनमहं मनसा स्मरामि ॥

कृष्ण द्वैपायन श्रीवेद व्यासजीने देवर्षि नारदजीकी प्रेरणासे परम श्रेष्ठश्रीमद्भागवत पुराणकी रचना की। उन्हीं देवर्षि नारद‌जीकी प्रेरणासे महामुनि गर्गाचार्यजीने गर्गसंहिताकी रचना की है। जैसा कि गर्गसंहिता माहात्म्यके प्रथम अध्यायमें लिखा है, कि “मया तुम्यं श्रवितं च यशः संक्षेपतो हरेः वैष्णवानां कियं गर्गत्वमेतद्विपुलं कुरु ॥३२॥ बचसा मम विमेन्द्र कृष्णद्वैपायनेन च। सर्वशास्त्रात्परं श्रेष्ठं श्रीमद्भागवतं कृतम् ॥२५॥ ब्रह्मन्यथा भागवतं गोपयिष्यामहं तथा। त्वत्कृतं श्रवथिस्यामि बहुलाश्वाय भूभृते ॥२६॥ देवर्षि नारदके उक्त वचनोंसे इसकी महत्ता स्पष्टतया परिलक्षित है। महामुनि गर्गाचार्य भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजीके कुल पुरोहित थे, इन्होंने परिपूर्णतम साक्षात् पुरुषोत्तम असंख्यब्रह्माण्डपति आनन्दकन्द वृन्दावनविहारी भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रकी जो अलौकिक लीलाएं स्वयम् देखीं, और भगवान्‌का जो पावन चरित्र देवर्षि नारदजीके मुखसे सुना, उसीका सविस्तृत वर्णन अपनी इस गर्गसंहितामें किया, है। इसमें गोलोकके वैभववर्णन और अवतारग्रहण करनेके रहस्यसे लेकर पश्चिमावस्यातक के श्रीकृष्णचन्द्र व्रजनन्दन राधिकेशके ऐसे ऐसे मनो हारी चरित्रोंका चित्रण है, कि जिनके पठन व श्रवण करनेसे मनुष्योंके हृदय श्रीराधामाधवकी भक्तिसे परिपूर्ण होकर प्रेमसे पुलकित हो उठते हैं।

दशखण्डात्मिका यह गर्गसंहिता अमृतसे भी मधुर बारह हजार श्लोकोंसे अलंकृत है। जो संस्कृतभाषा इस पवित्र आर्यभूमि भारतके जन-जनकी भाषा थी, दुर्भाग्यवश आज वह कुछ लोगोंतक ही सीमित रहगई है। संस्कृतभाषामें प्रवृत्ति न होनेके कारण अधिकांश जन अपने महान् ग्रन्थोंके रसास्वादनसे वश्चित ही रहते रहे हैं। इस कारण धार्मिक ग्रन्थोंका स्वाध्याय भी कम होता जा रहा है, और हम अपनी गौरवमयी परम्पराओंको भूलतेसे जा रहे हैं। अतः अपने महान् अन्योंका आधुनिक हिन्दीभाषामें अनु वादित होकर प्रकाशित होना आजकी मुख्य आवश्यकता है, जिससे अधिकसे अधिक व्यक्तियों द्वारा इनका लाभ उठाया जा सके।

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