Uttar Ramcharitam (उत्तररामचरितम्)
₹221.00
Author | Krishna Kant Tripathi |
Publisher | Chaukhamba Surbharti Prakashan |
Language | Sanskrit Text and Hindi Translation |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-93-89665-57-4 |
Pages | 446 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0969 |
Other | Dispatched in 3 days |
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उत्तररामचरितम् (Uttar Ramcharitam) संस्कृत-साहित्य के रसिक सहृदयों ने नाटक-साहित्य को सर्वाधिक रम्य स्वीकार किया है-“काव्येषु नाटकं रम्यम्।”
प्रस्तुत ‘उत्तररामचरित’ नाटक भी एक अतिरमणीय नाटक है। इसे आप संस्कृत-नाटक-मणिमाला में चाहे सुमेरु के स्थान पर रख लें अथवा मध्यमणि के स्थान पर-परन्तु दोनों ही स्थानों पर वह अपनी विशेषताओं से समुद्भासित रहेगा। नाट्यरूप भव (शंकर अथवा जगत्) के दिव्य-देह पर भूति (दिव्य भस्म अथवा ऐश्वर्य) का एक साथ स्मरण कराने वाले महाकवि भवभूति की प्रस्तुत-रचना में सचमुच ही कवि की वशवर्तिनी हंसवाहिनी भगवती सरस्वती प्रतिपद रस बरसाती दिखलाई देती है। संस्कृत साहित्य का रसिक सहृदयमात्र इस तथ्य को स्वीकार करता है। अतएव उनके सम्बन्ध में ‘उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते’ उक्ति अत्युक्ति नहीं, अपितु एक सरस हृदय का सार्थक उद्गार है।
विविध विश्वविद्यालयों की स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रायः सर्वत्र ही इस नाना-गुण-गरिष्ठ एवं श्रेष्ठ नाटक को निर्धारित किया जाता है। इस पर अनेक टीकाएँ हैं और सम्भवतः मिलती रहेंगी। यह अस्वाभाविक नहीं है। प्रस्तुत आलोचनात्मक संस्करण बी०ए०, एम०ए० एवं तत्समकक्ष उन समस्त परीक्षाओं के परीक्षार्थियों की आवश्यकता की पूर्ति को दृष्टिगत रखते हुए सम्पादित किया गया है, जो हिन्दी-माध्यम से अध्ययन करते हैं। इसमें गद्य, पद्म, प्राकृत आदि प्रायः समस्त आदर्श-पाठ निर्णयसागर से मुद्रित पुस्तक को आधार बनाया गया है। एतदर्थ हम विनीत भाव से उसके लेखक के आभारी हैं। मुद्रण सम्बन्धी वे समस्त विशेषताएँ इसमें लाने का प्रयास किया गया है, जो पुस्तक की उपयोगिता एवं सुन्दरता की श्रीवृद्धि करती हैं।
प्रस्तुत संस्करण की व्याख्या में मूलपाठ के बाद सर्वप्रथम कठिन शब्दों का अर्थ दिया गया है। तदनन्तर क्रमशः हिन्दी अनुवाद, संस्कृत-टीका, समासविग्रह, व्याकरण तथा विवृति दी गयी है। विवृत्ति भाग में वह सम्पूर्ण आवश्यक सामग्री संगृहीत की गयी है, जो अन्य टीका ग्रन्थों में एकत्र दुर्लभ है। संस्कृत-टीका भी अत्यन्त सरल सुबोध एवं स्पष्ट रूप में दी गयी है। आलोचनात्मक अध्ययन के लिए तथा ग्रन्थ को परमोपयोगी बनाने के लिए ग्रन्थ के प्रारम्भ में एक सुविस्तृत भूमिका भी दे दी गई है। भूमिका भाग में परीक्षोपयोगी सभी आवश्यक विषयों एवं प्रश्नों पर समालोचनाएँ हैं तथा महाकवि भवभूति और उनके कृतित्व से सम्बन्धित अद्यावधि सुलभ प्रायः समस्त सामग्री का प्रस्तुतीकरण भी है।
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