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Kavya Dipika (काव्यदीपिका)

106.00

Author Dr. Vindhyeshwri Prashad Mishra
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2021
ISBN 978-81-218-173-7
Pages 276
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0519
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Description

काव्यदीपिका (Kavya Dipika) धाराधीश्वर महाराज भोज ने ज्ञानसाधनात्मक वाङ्मय को छह प्रकारों में विभक्त किया है-

काव्यं शास्त्रेतिहासौ च काव्यशास्त्रं तथैव च।
काव्येतिहासः शास्त्रेतिहांसस्तदपि ष‌ड्विधम् ।। (सरस्वतीकण्ठाभरण, २।१३९)

अर्थात्, (१) काव्य, (२) शास्त्र (३) इतिहास, (४) काव्यशास्त्र, (५) काव्येतिहाम और (६) शास्त्रेतिहास-वाग्विस्तार की ये छह विच्छि तिया है। इनमें पहली तीन मूलवृत्तियाँ हैं, वाद की तीन प्रवृत्तियाँ, इन्हीं तीनों के पारस्परिक सम्मिश्रण से ये स्वरूप ग्रहण करती हैं। भोजराज का यह विभाजन अत्यन्त वैज्ञानिक है। वाणी, मनुष्य को तीन प्रकार से अनुभावित करती है – हृदय या संवेदनाओं को स्पर्श करके, मस्तिष्क की गहन चिन्तन और अन्वेषण की ओर प्रेरित करके (अर्थात् सूक्ष्मबुद्धि को जगाकर और बुद्धि के व्याव हारिक घरातल पर आकलन व्यवकलनमूलक तथ्यों का विवरण देकर। अनु भावन के इस वैविध्य के कारण त्वयं इसके भी तीन रूप हो जाते हैं, इन्हों को क्रमशः, ‘काव्य’, ‘शास्त्र’ और ‘इतिहास’ की संज्ञा दी गई है।

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