Bharat Chhodo Andolan Ke Senani (भारत छोड़ो आन्दोलन के सेनानी)
₹15.00
Author | Jay Prakash |
Publisher | Sarva Sewa Sangh Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 5th edition |
ISBN | - |
Pages | 48 |
Cover | Paper Back |
Size | 13 x 0.2 x 21 (L x W x H) |
Weight | |
Item Code | SSSP0086 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
3 in stock (can be backordered)
CompareDescription
भारत छोड़ो आन्दोलन के सेनानी (Bharat Chhodo Andolan Ke Senani) भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था। यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था।
अगस्त १९४२ में गांधी और सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद देश में खुली बगावत मच गयी। भारत-मंत्री ने उसी समय एक शरारतभरा बयान रेडियो पर सुना दिया कि ‘कांग्रेस बगावत पर आमादा है। जनता रेल की पटरियाँ उखाड़ रही है। थानों पर कब्जा कर रही है। वह हुकूमत को ठप करना चाहती है। गांधी ने कह दिया था कि नेता जेल में बन्द हों, तो हर आदमी अपने को नेता माने और जो उचित लगे सो करे। हाँ, हिंसा न करे।
जनता समझी कि भारत-मंत्री ने जो कार्यक्रम बताया है, वही सही है। भारत-सरकार ने कांग्रेस को बदनाम करने के लिए दो किताबें छापीं- ‘कांग्रेस रेसपांसिबिलिटी फार डिस्टरबेन्सेस १९४२-४३’ (१९४२-४३ के उपद्रवों के लिए कांग्रेस की जिम्मेदारी) और ‘कारस्पांडेंस विद मि० गांधी’ (श्री गांधी से पत्र-व्यवहार)। इसमें उसने कहा कि ‘भारत छोड़ो’- नामक जन-आन्दोलन का एक ही उद्देश्य है- ‘पूरी सरकार का काम-काज ठप करना और अंग्रेजों के युद्ध प्रयत्नों में बाधा डालना।’
सरकार ने जो दमन चक्र चलाया और आर्डीनेन्स जारी किये, उनको देखकर १९४४ में गांधी को लिखना पड़ा था- ‘आज वाइसराय के महल से जो अध्यादेश जारी किये जा रहे हैं, उनके सामने रौलट एक्ट का काला कानून भी मात हो जाता है !’ हाँ, तो इसी मौके पर जब चारों ओर उपद्रव और दमन का दौर चल रहा था, तो देश के बहुत से जवाँ-मर्द दिल से महसूस कर रहे थे कि काश, इस समय जयप्रकाश बाहर होता तो राजनीतिक क्रान्ति का हमारा सपना निश्चय ही पूरा हो जाता !
Reviews
There are no reviews yet.