Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.

Jyotish Shastra Prashikshak (ज्योतिषशास्त्र प्रशिक्षक)

250.00

Author Dr. Girija Shankar Shastri
Publisher Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 1st edition, 2014
ISBN -
Pages 300
Cover Hard Cover
Size 23 x 1.5 x 15 (l x w x h)
Weight
Item Code UPSS0030
Other Dispatched in 1-3 days

 

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

ज्योतिषशास्त्र प्रशिक्षक (Jyotish Shastra Prashikshak) भारतीय मनीषियों ने विश्ववाङ्मय के प्रत्येक क्षेत्र में अपने सूक्ष्मातिसूक्ष्म चिन्तन का असीम परिचय दिया है। जहाँ दर्शन के क्षेत्र में अद्वैतवाद, साहित्य के क्षेत्र में ध्वनि सिद्धान्त, व्याकरण के क्षेत्र में भाषा की विशुद्धता हेतु शब्दों की निष्पत्ति, संगीत के क्षेत्र में सप्तस्वर तथा आयुर्वेद के क्षेत्र में नाडी विज्ञान की शिक्षा दी, वहीं व्यवहार प्रवर्तन के लिये ज्योतिष शास्त्र की गणित एवं फलित पद्धति जगत् को प्रदान कर सदा के लिये ऋणी बना दिया। भारतीयों के चिन्तन के मूलाधार वेद हैं। वेद, धर्म सदाचार के साथ-साथ कौटुम्बिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा दार्शनिक विचारधाराओं के स्रोत भी है। भारतीय विद्याऐं वेदों से ही प्रकट हुई हैं। षड्वेदाङ्ग, वेदों को प्रकाशित करने में अपना पृथक् पृथक् योगदान देते हैं अतएव इनको वेद का अंग कहा जाता है। अड्यन्ते प्रकाश्यन्ते वेदाः अनेन इति वेदाङ्गाः। ज्योतिष शास्त्र की नेत्र संज्ञा यज्ञयागादि अनुष्ठानों के लिये काल को प्रकाशित करने के कारण ही है। वेद के अन्य अंगों की अपेक्षा अपनी विशेष योग्यता के कारण ही ज्योतिषशास्त्र वेद भगवान् का प्रधानअंग निर्मल चक्षु बन गया है। और इसका अन्य कारण यह भी है कि भविष्य जानने की इच्छा सभी युगों में मनुष्यों के मन में सर्वदा प्रबल रही है जिसकी परिणति यह ज्योतिषशास्त्र है।

अन्य शास्त्रों में वर्णित फलों की प्राप्ति हेतु दूसरे जन्मों की आवश्यकता होती है। मृत्यु के पश्चात् होने वाले फलों में अविश्वास होना भी स्वाभाविक है किन्तु ज्योतिष के फलादेश इसी जीवन में अपना फल देकर शास्त्र की प्रामाणिकता सिद्ध कर देते हैं। जिससे मृत्यु के पश्चात् परलोक एवं इहलोक में सुख दुःखादि कर्म फलों की प्राप्ति में विश्वास सहज ही हो जाता है। अतएव कहा गया है-

अन्यानि शास्त्राणि विनोदमात्रं न किञ्चिदेषां भुवि दृष्टमस्ति ।
चिकित्सितज्योतिषमन्त्रवादाः पदे पदे प्रत्ययमावहन्ति ।।

फल बताने हेतु अनेक प्रकार की विधियाँ दीर्घकाल तक आचार्यों द्वारा विकसित की गयी जिनमें मुख्यतः जातक, ताजिक प्रश्न, केरली, नाडी, शकुन, स्वप्न, रमल, स्वर, अंक, लक्षण, सामुद्रिक तथा संहिता ज्योतिष प्रधान हैं। इन सभी विधियों में जातक की प्रधानता है जो वैदिककाल से अद्यावधि निर्वाधरूप से प्रचलित है। फलादेश हेतु अपौरूषेय आचार्यों द्वारा तनु, धन, सहज, सुहृद, सुत, रिपु, जाया, मृत्यु, धर्म, कर्म, आय एवं व्यय आदि द्वादशभावों को निर्धारित किया है, जिनमें प्रायः जगत के समस्त व्यवहार गृहीत हो जाते हैं। किन्तु यह शास्त्र जब अल्पज्ञ तथा अज्ञानी लोगों के हाथ में आ जाता है तब जगत कल्याण की अपेक्षा ध्वंस होने की स्थिति अधिक हो जाती है। जैसे बन्दर के हाथ में चाकू आ जाने पर वह या तो दूसरों का गला काट देता है अथवा स्वयं अपना अहित कर बैठता है। अतएव इस शास्त्र के अध्ययनकर्त्ता तथा अध्यापक दोनों को जितेन्द्रिय, विनम्र, बुद्धिमान तथा धैर्यवान के साथ-साथ आध्यात्मिक भी होना आवश्यक है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Jyotish Shastra Prashikshak (ज्योतिषशास्त्र प्रशिक्षक)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×