Laghu Siddhanta Kaumudi (लघुसिन्द्धान्त कौमुदी)
₹256.00
Author | Pt. Shree Harekant Mishra |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-93-91512-62-0 |
Pages | 695 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0404 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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लघुसिन्द्धान्त कौमुदी (Laghu Siddhanta Kaumudi) संस्कृत साहित्य में व्याकरण का सर्वप्रथम स्थान है। व्याक्रियन्ते-व्युत्पा-द्यन्ते शब्दा अनेनेति शब्दज्ञानजनकं ‘ध्याकरणम्’ । अर्थात्, जिसके द्वारा साधु शब्दों का ज्ञान होता है, उसे व्याकरण कहते है। भारतीय परम्परा में प्रत्येक विषय का सम्बन्ध वेदों से है। व्याकरण की गणना वेदाङ्ग में किया है। उसे वेद का मुख कहा गया है-
सुखं व्याकरणं तस्य ज्यौतिषं नेत्रमुच्यते । निरुक्तं श्रोत्रमुद्दिद्दिष्टं छन्दसां विचतिः पदे ।।
शिक्षाघ्राणं तु वेदस्य हस्तौ कल्पान् प्रचचते । भर्तृहरि ने भी व्याकरण को छहों वेदाङ्गों में सर्वप्रथम और सर्वप्रधान माना है- ‘प्रथमं छन्दसामङ्ग प्राहुर्व्याकरणं बुधाः’ ।
व्याकरण का उत्पत्तिकाल तथा आदि प्रणेता-व्याकरण शास्त्र के भादि प्रणेताओं का नाम ऋक्तन्त्र ( ११४) में उल्लेख है -‘ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय’, इन्द्रो भारद्वाजाय, भारद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः’। इस कथन से स्पष्ट होता है कि ब्रह्मा, बृहस्पति, इन्द्र, वरुण ये क्रमशः व्याकरण शास्त्र के प्रवक्ता हैं। व्याकरण महाभाष्य में भी उल्लेख मिलता है कि बृहस्पति ने प्रतिपद पाठ की विधि से इन्द्र को शब्दों का उपदेश दिया, परन्तु शब्दों का उपदेश दिव्थ वर्ष सहस्रों में भी समाप्त न हो सका- ‘बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच, न चान्तं जगाम’ बृहस्पतिश्च प्रवक्ता, इन्द्रश्चाध्येता दिव्यं वर्षसहस्रमध्ययन- कालः तथापि नान्तं जगाम । (महाभाष्य)। इसका कारण था कि उस समय व्याकरण का कोई लक्षण ग्रन्थ नई था। अतः शब्दोपदेश में कठिनाई होती थी। इन्द्र ने व्याकरणाचार्य ‘वायु’ की सहायता से लक्षणात्मक शब्दोपदेश की प्रकिया का अविष्कार किया, जिससे उत्तरकालिक आचार्यों के लिए सुविधः हो गई।”
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