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Bhasha Vigyan (भाषा विज्ञान)

170.00

Author Shri Bhagwan Tiwari
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2007
ISBN 81-87415-73-8
Pages 512
Cover Paper Back
Size 14 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0006
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Description

भाषा विज्ञान (Bhasha Vigyan) ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन का क्षेत्र व्यापक है। ज्ञान-विज्ञान के अन्तर्गत भाषाविज्ञान का अध्ययन अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पर, भाषा विज्ञान का निरूपण एवं विश्लेषण गणितशास्त्र की तरह अत्यन्त ही दुरुह है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि प्रखर विद्वान एवं सच्चे अन्वेषक हर दुर्बोध कार्य एवं विषय को दूसरों के उपयोग एवं लाभ के लिए सुबोध बना देते हैं। भाषावैज्ञानिकों ने लगन और निष्ठा के साथ भाषाविज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया है और भाषा सम्बन्धी गुत्थियों को सुलझाकर भाषाविज्ञान जैसे क्लिष्ट विषय को सबके लिए सुगम बना दिया है। पाश्चात्य भाषावैज्ञानिकों ने केवल मौलिक ग्रन्थों की रचना ही नहीं की है अपितु उनमें से कुछ विद्वानों ने विभिन्न भाषावैज्ञानिक सम्प्रदायों (स्कूल्स) की प्रतिष्ठा भी की है। जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी एवं रूसी आदि भाषाओं में जिस प्रकार भाषाविज्ञान के अनेक स्कूल प्रतिष्ठित हुए हैं उस प्रकार हिन्दी में सम्प्रदाय विशेष की प्रतिष्ठा तो नहीं हुई पर हिन्दी में भी भाषाविज्ञान के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ उपलब्ध अवश्य हैं जिनसे उच्च कक्षाओं के छात्र अपेक्षित सामग्री का अध्ययन कर लाभ उठा रहे हैं। चाणक्य का एक महत्त्वपूर्ण सुभाषित है-

पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु यद्धनम् ।
उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम् ।।

अर्थात् बिना पढ़े ग्रंथांकित विद्या और दूसरों को दिया गया धन समय पड़ने पर काम नहीं आता है। उनकी इस सूक्ति को ध्यान में रखकर मैं अपने छात्र-जीवन में हर पुस्तक में उपलब्ध ज्ञान को अपनी स्मृति में संचित कर लेता था और समय आने पर सुगमतापूर्वक उस ज्ञान का उपयोग आज भी कर लेता हूँ।

मैं जब एम०ए० की परीक्षा की तैयारी कर रहा था, उस समय मुझे काव्य-शास्त्र एवं भाषाविज्ञान-ये दोनों विषय अत्यन्त ही रोचक लगे। अतः पुस्तकालय से इन दोनों विषयों से संबंधित पुस्तकों को निकालकर लाता और उनकी सहायता से आवश्यक सामग्री नोट कर लेता था। काव्य-शास्त्र एवं भाषाविज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। काव्य-शास्त्र भाषा के अलंकरण-पक्ष का विवेचन करता है और भाषाविज्ञान भाषा के निर्माण पक्ष का निरूपण करता है। मैंने गंभीरतापूर्वक इन दोनों विषयों का अध्ययन किया क्योंकि मुझे ऐसा अहसास हुआ कि बिना एक ज्ञान केदूसरे का ज्ञान परिपक्व नहीं हो सकता। इस संदर्भ में प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक ने का मत विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने लिखा है कि सच्चे साहित्य और सच्चे भाषाविज्ञान में कोई पारस्परिक विरोध नहीं है, एक सत् भाषावैज्ञानिक कम सेकम आधा साहित्यिक होता है और एक असली साहित्यकार कम से कम आधा भाषावैज्ञानिक होता है। विद्यार्थी जीवन में ‘काग चेष्टा, वकुल ध्यानम्’ वाले सिद्धांत का मैं अनुगमन करता रहा। भाषाविज्ञान के अध्ययन के साथ-साथ काव्यशास्त्र के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा प्रतिपादित काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों एवं मान्यताओं का भी एकाग्रता के साथ अध्ययन, चिन्तन एवं मनन करता रहा।

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