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Brihad Avakahada Chakram (बृहद् अवकहडाचक्रम्)

34.00

Author Dr. Ramchand Pandey
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2019
ISBN -
Pages 95
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0300
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Description

बृहद् अवकहडाचक्रम् (Brihad Avakahada Chakram)

जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युति ।
तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥

समस्त ब्रह्माण्ड के परिचायक सिद्धान्त-संहिता-होरा स्कन्धत्रयात्मक विशाल ज्योतिष शास्त्र में प्रवेश पाने के लिए कम से कम तीन प्रवेश द्वार अपेक्षित हैं जिनके द्वारा ज्योतिष शास्त्र के विशाल प्रांगण की तौकी ली जा सकती है। किसी एक प्रवेश द्वार से सम्पूर्ण अङ्गों का सिंहावलोकन सम्भव नहीं है। लघुकाय द्वार (ग्रन्थ) से तो और भी अधिक दुरूह है। यहाँ होरास्कन्ध के मुहूत्तं भाग में प्रवेश तथा होराशास्त्र से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान हेतु आव श्यक विषयों का समावेश किया गया है। वस्तुतः ग्रन्थ का नाम ज्योतिष प्रवेशिका है किन्तु अवकहड़ाचक्र का ज्ञान कराना भी इस ग्रन्थ का प्रमुख उद्देश्य है अतः इसका नाम अवकहड़ाचक्र रखा गया। अन्य अनेक विषयों से परिपूरित होने के कारण इसे बृहदवकहडा चक्र कहा गया। इस नाम से अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। सबका उद्देश्य एक ही है। सभी ग्रन्थों में अवकहडाचक्र के व्याख्यान के साथ-साथ अन्य अनेक व्यावहारिक विषयों का सन्निवेश किया गया है। अवकहृडाचक्र का परिचय यद्यपि ग्रन्थ में अवकहडाचक्र के वर्णन में दिया गया हो फिर भी यहाँ संक्षिप्त परिचय दे रहा हूँ।

अव क ह ड आदि चार पञ्चाक्षरी है जो क्रम से इस प्रकार हैं- १. अवक हड, २. म ट पर त, ३. न य भ जख, ४. ग स द च ल । इनमें अ इ उ ए ओ इन पाँच स्वरों का प्रयोग कर २०४५=१०० भेद किये गये । समस्त १०० भेदों के भिन्न १०० कोष्ठकों में लिखा जाता है इसी लिए इसे शतपदचक्र भी कहा जाता है। चारों पश्चाक्षरी में जहाँ मध्य स्वर ‘उ’ आता है उसे चार स्तम्भ माना गया तथा चारों स्तम्भों पर ३-३ अक्षर और दिये गये। ये अक्षर क्रम से इस प्रकार हैं-

१. घ ङ छ, २. ष ण ठ, ३. ध फढ, ४. थ झ ञ । इन सभी वर्षों की संख्या १००+१२ = ११२ हो जाती है।

नक्षत्रचक्र में अभिजित् को लेकर २८ नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं अतः २८ नक्षत्रों के कुल २८४४ = ११२ होते हैं। अवकहड चक्र के ११२ अक्षर (वर्णं), ११२ नक्षत्र चरणों के परिचायक हैं। नक्षत्रों का आरम्भ कृत्तिका से होता है। शेष चक्र देखने से स्पष्ट होगा । नक्षत्र एवं नक्षत्र-चरणों का ज्ञान होराशास्त्र का प्रथम एवं परम आवश्यक होता है। इसके साथ-साथ राशि, राशीश एवं पञ्चाङ्गीय विषयों का परिचय दिया गया है। तिथि-वार-योग-नक्षत्र-करण इन पञ्चाङ्गों का उपयोग सभी प्रकार के मुहूत्तों में होता है। इसी प्रकार अन्य प्रसङ्गोपात्त विषयों का उल्लेख स्थान स्थान पर करते हुए ग्रन्य उपयोगी तथा सुगम बनाने का प्रयास किया गया है। प्रारम्भ में कालज्ञान, जो ज्योतिषशास्त्र का महत्त्वपूर्ण विषय है, का यथासम्भव परिचय दिया गया है। तथा ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट के माध्यम से इष्टकाल से जन्माङ्गचक्र निर्माण तक का अत्यन्त सरल एवं सूक्ष्म सोदाहरण-विधि दर्शायी गई है। ग्रन्थ का कलेवर लघु है किन्तु इसमें वर्णित सभी विषय व्यावहारिक एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ज्योतिषशास्त्र में प्रवेश पाने के अभिलाषी जिज्ञासु गण इस ग्रन्थ से अवश्य लाभान्वित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है तथा इसी प्रकार का प्रयास है।

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