Hindi Sahitya Ka Itihas (हिन्दी साहित्य का इतिहास)
₹255.00
Author | Acharya Ramchandra Shukla |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | HIndi |
Edition | 3rd edition, 2022 |
ISBN | 978-81-7124-956-5 |
Pages | 504 |
Cover | Paper back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP00007 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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हिन्दी साहित्य का इतिहास (Hindi Sahitya Ka Itihas) यह सर्वस्वीकृत तथ्य है कि आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक ‘पक्का और व्यवस्थित ढाँचा’ पहली बार खड़ा किया है। आचार्य शुक्ल का उद्देश्य भी यही था।’ इसलिए जिस सीमित उद्देश्य को लेकर आचार्य शुक्ल ने अपना इतिहास प्रस्तुत किया है उसमें वे पूर्णतः सफल हुए हैं, इस बात से किसी का कोई विरोध नहीं है। मतभेद, विरोध या आपत्ति उन बातों को लेकर है जो आचार्य शुक्ल के उद्देश्य की परिधि के बाहर की हैं। इसलिए परवर्ती आलोचकों के मतभेदों को देखकर यह धारणा नहीं बनानी चाहिये कि अब उनके इतिहास का महत्त्व नहीं रह गया है और वे अपने उद्देश्य में असफल रहे हैं। यहाँ पहले हम आचार्य शुक्ल की इतिहास-दृष्टि और उनके इतिहास में उसके प्रतिफलन के प्रश्न पर विचार करना चाहेंगे।
आचार्य शुक्ल की इतिहास-सम्बन्धी अवधारणा और उनके इतिहास में उसके प्रतिफलन की चर्चा के बाद उनके इतिहास के कुछ अन्य पक्षों पर विचार करना आवश्यक है। ये पक्ष हैं- 1. नामकरण और काल-विभाजन, 2. सामग्री एवं तथ्य- संचयन और 3. प्रवृत्ति-निरूपण। वस्तुतः ये सारे पक्ष एक-दूसरे से जुड़े हैं। नामकरण प्रवृत्तियों को दृष्टि में रखकर किया गया है और काल-विभाजन प्रवृत्ति-विशेष के क्षीयमाण होने एवं नयी प्रवृत्ति के उदय होने की अवधि को ध्यान में रखकर। प्रवृत्तियों के निर्णय में प्राप्त रचनाओं की संख्या, प्रसिद्धि एवं वर्ण्य-विषय को आधार बनाया गया है। सबसे पहले नामकरण और काल-विभाजन को लिया जाय। आचार्य शुक्ल का विभाजन इस प्रकार है-
आदिकाल (वीरगाथा-काल, संवत् 1050-1375)
पूर्व मध्यकाल (भक्ति-काल, संवत् 1375-1700)
उत्तर मध्यकाल (रीति-काल, संवत् 1700-1900)
आधुनिक काल (गद्य-काल, संवत् 1900-1984)
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