Kamakhya Tantram (कामाख्यातंत्रम)
₹280.00
Author | Ajay Kumar Uttam |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st Edition 2011 |
ISBN | 978-93-81189-12-2 |
Pages | 302 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h ) |
Weight | |
Item Code | BVS0007 |
Other | Dispatched in 3 days |
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कामाख्यातंत्रम (Kamakhya Tantram) कामाख्या तंत्र तंत्रशास्त्र का श्रेष्ठ एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। यह तंत्र अत्यन्त ही गोपनीय एवं दुर्लभ रहा है। इस तंत्र में दश महाविद्याओं में से एक आद्या भगवती काली के एक स्वरूप कामाख्या का वर्णन हुआ है। इस तंत्र में श्रीभगवती कामाख्या के स्वरूप, मन्त्रोद्धार, काली-तारा के मन्त्र देने में चक्राणि गणना का निषेध, कामाख्या देवी का ध्यान, कामाख्या देवी का मन्त्र, श्रीगुरु तत्त्व, आचार एवं भाव-त्रय, कामकला का साधन, शत्रु विनष्टीकरण, पूर्णाभिषेक की विधि, श्रीगुरु के लक्षण, मुक्ति का साधन, कामाख्या देवी का स्वरूप, कामाख्या पीठ स्थान का वर्णन तथा मन्त्रों की कुल्लुकाओं का वर्णन किया गया है।
कामाख्या तंत्र बारह पटलों का लघुकाय ग्रन्थ है। इसके प्रधान विषयों का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है-
प्रस्तुत ग्रन्थ कामाख्या तंत्र देवी और शिव के संवाद के रूप में निबद्ध है। ग्रन्थ का प्रथम पटल श्री देवी और श्री शिव के संवाद से प्रारम्भ होता है। इस पटल में भगवान शिव देवी को बताते हैं कि भगवती कामाख्या योनि स्वरूपा है, वे नित्य हैं तथा वर एवं आनन्द प्रदान करने वाली, सब की जननी, तथा सर्वरक्षाकारिणी हैं। भगवती कामाख्या धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षस्वरूप हैं। तीनों लोकों में कामाख्या के अतिरिक्त अन्य कोई गति नहीं है। तन्त्रादि में लाखों करोड़ महाविद्यायें वर्णित है। उन सबमे सबसे श्रेष्ठ षोडशी महाविद्या मानी गयी है। षोडशी महाविद्या का मूल कारण भगवती कामाख्या ही हैं।
कामाख्या तंत्र के द्वितीय पटल में कामाख्या मंत्र त्रीं श्रीं श्रीं का उद्धार किया गया है। इस मन्त्र के विषय में कहा गया है कि सभी विद्याओं के साधकों को इस मंत्र की साधना करनी चाहिये, अन्यथा सिद्धि की हानि होती है। और पग पग पर विघ्न होता है। शाक्तों के लिये इस मन्त्र की साधना आवश्यक है। इस मन्त्र के समक्ष राजा और मन्त्री आदि तथा अन्य सभी मनुष्य भेड़ आदि पशुओं के समान वशीभूत हो जाते हैं। हाथी, घोड़े, रथ आदि के सहित समस्त नगरी, राजा-रानी और उर्वशी आदि स्वर्ग की वेश्यायें (अप्सरायें) भी इस मन्त्र के प्रभाव से क्षण भर में वशीभूत हो जाती हैं।
कामाख्या तंत्र के तृतीय पटल में बताया गया है कि काली-तारा का मन्त्र देते समय चक्रादि की गणना न करे अन्यथा सिद्धि नहीं प्राप्त होती है। इसके पश्चात् कामाख्या देवी के यन्त्र के निर्माण की विधि बतायी गयी है। तदुपरान्त कामाख्या देवी का विस्तृत ध्यान दिया गया है। ध्यान के पश्चात् पञ्चतत्त्व की महिमा का वर्णन है। सबसे अन्त में योनि पूजन का विस्तृत एवं गोपनीय वर्णन किया गया है।
कामाख्या तंत्र के चतुर्थ पटल में कामाख्या देवी के पूर्णमंत्र का उद्धार किया गया है। श्रीं श्रीं श्रीं हूं हूं स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये! प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूं हूं, त्रीं श्रीं त्रीं स्वाहा यह कामाख्या देवी का पूर्ण मन्त्र है। इसके आदि में ॐ लगाने से यह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष देने वाला बन जाता है। इसके पश्चात् इस मन्त्र की महिमा का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् कामाख्या देवी का ध्यान वर्णित है। ध्यान के पश्चात् मन्त्र की गोपनीय साधना पद्धति वर्णित है।
कामाख्या तंत्र के पश्चम पटल में श्रीगुरुतत्त्व व भाव-त्रय का वर्णन है। इस ग्रन्थ में वीर भाव को प्रधान भाव स्वीकार किया गया है और उसी का इसमें प्रधान रूप से वर्णन भी किया गया है।
कामाख्या तंत्र के षष्ठ पटल में पञ्च तत्त्व द्वारा कामकला की साधना वर्णित है। इस गुह्यसाधना में पञ्च तत्त्व, मद्य, मांस, मुद्रा, मैथुन व मत्स्य का प्रयोग किया जाता है। यहाँ पर जो साधना विधान वर्णित है, उसके अनुसार साधना में प्रवृत्त नहीं होना चाहिये, सर्वप्रथम अपने श्री गुरुदेव से इसका ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिये। यह साधक के हित में होगा।
कामाख्या तंत्र के सप्तम पटल में शत्रु विनाश के उपाय वर्णित हैं। इसी प्रसंग में मूत्र साधन का वर्णन किया गया है।
कामाख्या तंत्र के अष्टम पटल में पूर्णाभिषेक की विस्तृत विधि एवं श्री गुरुदेव के लक्षण का वर्णन किया गया है।
कामाख्या तंत्र के नवम पटल में मुक्ति-तत्त्व का वर्णन है।
कामाख्या तंत्र के दशम पटल में कामाख्या देवी का स्वरूप वर्णित है।
कामाख्या तंत्र के एकादश पटल में प्रधान महापीठों के वर्णन के पश्चात् कामाख्या महापीठ का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि इन पीठ- स्थानों में की गयी साधना अनन्त फल प्रदान करती है।
कामाख्या तंत्र के द्वादश पटल में मन्त्रों की कुल्लुकाओं का वर्णन किया गया है। आगे कामकला का बीज और कामकला का ध्यान दिया गया है। इस प्रकार सम्पूर्ण कामाख्या तंत्र द्वादश पटल में निबद्ध एवं पूर्ण है। इस तंत्र में कामाख्या देवी के स्थान का भी वर्णन प्राप्त होता है जो वर्तमान असम राज्य के गुवाहाटी नगर में स्थित है। यह स्थान वाममार्ग के प्रधान शक्तिपीठों में सर्वोपरि है। विश्व के अनेक देशों के तंत्र-साधक यहाँ पर आकर अपनी साधना पूर्ण करते हैं और मनोवाञ्छित फल प्राप्त करते हैं।
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