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Matsya Maha Puran (मत्स्यमहापुराण)

430.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 29th edition
ISBN -
Pages 1086
Cover Hard Cover
Size 19 x 5 x 27 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0071
Other Code - 557

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Description

मत्स्यमहापुराण (Matsya Maha Puran) अठारह पुराणों में मत्स्यपुराण अपना विशिष्ट स्थान रखता है। भगवान् विष्णुके मत्स्यावतारसे सम्बद्ध होनेके कारण यह मत्स्यपुराण कहलाता है। भगवान् मत्स्यके द्वारा राजा वैवस्वत मनु तथा सप्तर्षियोंको जो अत्यन्त दिव्य एवं कल्याणकारी उपदेश दिये गये थे, वे ही मत्स्यपुराणमें संगृहीत हैं। सुष्टिके प्रारम्भमें जब हयग्रीव नामक असुर वेदादि शास्त्रोंको चुराकर पातालमें चला गया, तब भगवान्ने मत्स्यावतार धारणकर वेदोंका उद्धार किया। भगवान् विष्णुके दस अवतारोंमें मत्स्यावतार सर्वप्रथम है।

वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्यादि सभी सम्प्रदायोंमें मत्स्यपुराणकी समानरूपसे मान्यता है। इस पुराणकी श्लोक-संख्या चौदह हजार है, जो २९१ अध्यायोंमें उपनिबद्ध है। इसमें भगवान्‌के मत्स्यावतारकी कथा, मनु-मत्स्य-संवाद, सृष्टि-वर्णन, तत्त्व-मीमांसा, मन्वन्तर तथा पितृवंशका विस्तृत वर्णन है। श्रद्धोंके सांगोपाङ्ग निरूपणके साथ चन्द्रवंशी राजाओंका वर्णन भी इस पुराणका पठनीय विषय है। ययाति-चरित्रका वर्णन अत्यन्त रोचक एवं शिक्षाप्रद है, जो भोगमार्गको सर्वथा अनुचित बताकर निवृत्ति एवं त्यागधर्मका आश्रय ग्रहण करनेकी प्रेरणा देता है।

विविध व्रतोंका वर्णन भी इस पुराणकी महती विशेषता है। अनेक व्रतानुष्ठानोंकी विधि, विविध दानोंकी महिमा, शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म, नवग्रहोंका स्वरूप एवं तर्पण-विधिका प्रतिपादन सुन्दर कथाओंके माध्यमसे किया गया है। तदनन्तर प्रयाग-महिमा, भूगोल-खगोलका वर्णन, ज्योतिश्चक्र, त्रिपुरासुर संग्राम, तारकासुर-आख्यान, नृसिंह-चरित्र, काशी तथा नर्मदा-माहात्म्य, त्रऋषियोंका नाम-गोत्र तथा वंश, सती-सावित्रीकी कथा तथा राजधर्मोका इसमें सरस चित्रण किया गया है।

पुराणोंकी विषयानुक्रमणिका, भृगु, अंगिरा, अत्रि, विश्वामित्र, वसिष्ठादि गोत्रप्रवर्तक ऋषियोंके वंश-वर्णन, राजनीति, यात्राकाल, स्वप्नशास्त्र, शकुनशास्त्र, अंगस्फुरण, ज्योतिषशास्त्र, रवविज्ञान, विभिन्न देवताओंकी प्रतिमाओंके स्वरूप-लक्षण, प्रतिमान-मान तथा निर्माण विधि, देव-प्रतिष्ठा एवं गृह-निर्माणसम्बन्धी वास्तुविद्या आदि इस पुराणके अन्य उपयोगी विषय हैं। इसमें वर्णित कच-देवयानी आख्यान, त्रिपुर-वध, पार्वती-परिणय, विभूति द्वादशीव्रत आदिकी कथाएँ अत्यन्त सुन्दर और उपयोगी हैं। इस पुराणके पठन-पाठन एवं श्रवणके माहात्म्यके विषयमें स्वयं मत्यभगवान्ने कहा है- यह पुराण परम पवित्र, आयुकी वृद्धि करनेवाला, कीर्तिवर्धक, महापापोंका नाशक तथा शुभकारक है। इस पुराणके एक श्लोकके एक पादको भी जो पढ़ता है, वह पापोंसे मुक्त होकर श्रीमन्नारायणके पदको प्राप्त कर लेता है तथा दिव्य सुखोंका भोग करता है।

कल्याणके विशेषाङ्करूपमें लेटरप्रेससे पूर्व प्रकाशित यह महत्त्वपूर्ण पुराण बहुत समयसे अनुपलब्ध था। विषयकी उपयोगिता एवं बहुमूल्य पौराणिक साहित्यको जन-सामान्यको उपलब्ध करानेकी दृष्टि एवं पाठकोंके आग्रहको ध्यानमें रखकर ‘मत्स्यमहापुराण’ सानुवादके इस नवीन संस्करणको ऑफसेटकी सुन्दर छपाई, आकर्षक साज-सज्जा एवं मजबूत जिल्द आदि विशेषताओंसे युक्त करके पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, पाठकगण गीताप्रेससे प्रकाशित अन्य पुराणोंकी भाँति इस पुराणकी महत्त्वपूर्ण सामग्रीके पठन-पाठनके द्वारा अपने आत्मकल्याणका मार्ग प्रशस्त करेंगे।

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