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Meghadutam Sampurna (मेघदूतम् सम्पूर्णः)

100.00

Author Dr. Dhananjay Kumar Tripathi
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2016
ISBN -
Pages 274
Cover Paper Back
Size 12 x 3 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0090
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Description

मेघदूतम् सम्पूर्णः (Meghadutam Sampurna) विश्व का कौन ऐसा साहित्यरसिक है जो महाकवि कालिदास को नहीं जानता ? यद्यपि बाणभट्ट प्रभृति बहुत से पश्चाद्वर्ती साहित्यकार हुए परन्तु कालिदास की ऊँचाई को वे न छू सके। क्योंकि कालिदास ने भारतवर्ष का आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिकस्वरूप का प्रतिपादन जितना सुन्दर ढंग से अपनी रचनाओं में किया है उतना किसी अन्य ने नहीं। दूसरी बात यह कि महाकवि कालिदास के प्रत्येक पात्र वेदमूला भारतीयसंस्कृति के अग्रदूत हैं। भारत के राजाओं, गुरुकुलाचार्यों, महर्षियों और स्नातकों का उदात्तत्चरित्र प्रस्तुत करते हुए कालिदास ने भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अपने अतीत गौरव के प्रति निष्ठित होने की प्रेरणा दी है।

प्रस्तुत मेघदूत कालिदास का एक खण्डकाव्य (गीतिकाव्य) है जो वाल्मीकि रामायण के ‘हनुमान् के दौत्य’ के आधारभित्ति पर स्थित है। विरही यक्ष का सन्देशवाहक बनकर मेघ उसकी वल्लभा के पास अलकापुरी को जाता है। पूर्वमेघ में रामगिरि पर्वत से लेकर यक्ष के द्वारा अलकापुरी तक का मार्ग मेघ को बताया जाता है तथा उत्तरमेघ में यक्षिणी का वर्णन एवं विरहावस्था का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। संस्कृतसाहित्यानुरागियों के लिए एवं अध्येताओं के लिए प्रस्तुत संस्करण उपयोगी बनाया गया है। प्राचीनपद्धति और आधुनिक (बी०ए०) पद्धति की परीक्षाओं की दृष्टि से इस संस्करण को अत्यन्त उपयोगी बनाया गया है। साहित्यरसिकों के लिए अन्वय के बाद पदार्थ दिया गया है जिससे उस पूरे श्लोक के अर्थ को उन्हें तत्क्षण ही समझ लेने में कठिनाई न हो। संस्कृतविदों के लिए संस्कृतव्याख्या में समास, कोष अलङ्कार भी सन्निहित हैं।

मेघदूतम् – पूर्व और उत्तर भाग से संयुक्त मेघदूत खण्डकाव्य और गीतिकाव्य हैं। इसमें कुवेर के शाप से अस्तङ्‌ङ्गमित महिमावाले किसी कामी यक्ष की विरहावस्था का चित्रण है। वाल्मीकि रामायण के हनुमत्-दौत्य पर आधारित यह खण्डकाव्य दूतकाव्य का प्रवर्तक है इसी के आधार पर विश्व के अन्य दूतकाव्य लिखे गये। पूर्वमेघ में रामगिरि (पर्वत) से लेकर अलका तक के भूभागों, देशों, नागरिकों, नदियो, पहाड़ों आदि का वर्णन आगे किया जाएगा। उत्तरमेघ में यक्षिणी का वर्णन, उसकी विरहावस्था का वर्णन और यक्षिणी को कथनीय सन्देश आदि उपनिबद्ध हैं।l इस खण्डकाव्य को कोई भी सहृदय पढ़कर वाष्प से रुँधे गलेवाला हो जाता है। इस काव्य में महाकवि को प्रौढ शैली दीख पड़ती है। इससे स्पष्ट होता है कि काव्यपरम्परा में कालिदास की यह अन्तिम रचना है।

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