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Pashchaty Saundarya Chintan (पाश्चात्य सौंदर्य चिंतन)

212.00

Author Dr. Sonu Divedi Shivani
Publisher Bharati Prakashan
Language Hindi
Edition 2015
ISBN 978-93-80550-59-6
Pages 290
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BP0010
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Description

पाश्चात्य सौंदर्य चिंतन (Pashchaty Saundarya Chintan) सौन्दर्य शब्द अपने आप में सुख, प्रिय, मधुर, रूचिकर, सुन्दर व आनंद जैसे अनेक मन के सुखकारी सृजनात्मक भाव, अनुभूति एवं अर्थ से पूर्ण शब्दों को समग्र रूप में समेटे हुए है। सौन्दर्य शास्त्र के अन्र्तगत् सौन्दर्य शब्द के इन्हीं सहज और विशिष्ट् अर्थों की व्याख्या विद्वानों द्वारा अपने-अपने ढ़ग से की गई। दर्शन के प्रमुख शाखा के रूप में सौन्दर्यशास्त्र का विकास सर्वप्रथम पश्चिमी दार्शनिकों के द्वारा ही हुआ। कला रूप अनुभूति परक सौन्दर्य भावों को साकार करने का आधार प्रदान करती है जो मानवीय भावो में समाहित सत्यं, शिवं सुन्दरम के स्वरूप को सजीव कर आम जन-समूह के मध्य लाती है। सौन्दर्य के भौतिक स्वरूप की लौकिक विवेचना पाश्चात्य सौन्दर्य चिंतको ने बहुत गहनता के साथ की है। ‘एस्थेटिक्स’ अर्थात् सौदर्यशास्त्र पाश्चात्य चिंतन धारा की एक विशेष विवेचना है। ‘एस्थेटिक्स’ शब्द के सृजन का पूरा श्रेय पश्चिम विचार धारा को ही जाता है सौन्दर्यशास्त्र’ शब्द इसी पश्चिमी ‘एस्थेटिक्स’ संज्ञा का अनुवाद मात्र है। लेकिन पाश्चात्य विचारधारा में भी 18 वीं शताब्दी से पूर्व इसका अस्तित्व नहीं था। अलेक्जेण्डर बाउमगार्टेन ने आधुनिक अर्थ में ‘एस्थेटिक्स’ शब्द का प्रयोग करना आरम्भ किया। फिर भी सभी कला में विद्यमान सामान्य आधारभूत तत्वों के विचार के विषय के रूप में ‘एस्थेटिक्स’ को मुख्यतः 19 वीं शती की हेगेलीय उत्पत्ति माना गया है।

कला रूप अनुभूति परक सौन्दर्य भावों को साकार करने का आधार प्रदान करती है जो मानवीय भावो में समाहित सत्यं, शिवं, सुन्दरम के स्वरूप को सजीव कर आम जन समूह के मध्य लाती है। सत्यं, शिवं, सुन्दरम् के लौकिक एवं अलौकिक नैसर्गिक भावों के स्थूल एवं सूक्ष्म स्वरूप को विवेचित करता है सौन्दर्य शास्त्र। सौन्दर्य चिंतन की गहनता से ही कला-सृजन में सौन्दर्य के आन्तरिक और बाह्य स्वरूप की उत्पत्ति, विकास एवं प्रस्तुति के गूढ़ प्रक्रिया को पाश्चात्य चिंतको के विचारों के आलोक में विवेचना करन्न ही इस पुस्तक की विशिष्ट्ता है। पाश्चात्य दर्शन में सौन्दर्य चितंन के क्षेत्र में विद्वानों के कला एवं सौन्दर्य सम्बधी विचारों का अध्ययन व संकलन कर क्रमबद्ध ढंग से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

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