Sankhya Sutram (सांख्यसूत्रम)
₹153.00
Author | Dr. Ramshankar Bhattacharya |
Publisher | Ratna Publications |
Language | Sanskrit |
Edition | 3rd edition |
ISBN | - |
Pages | 150 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RPV0006 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सांख्यसूत्रम (Sankhya Sutram)
आदिविद्वत्पदाख्याय सिद्धाय परमर्षये । घर्ममेघप्रतिष्ठाय कपिलाय नमो नमः ।।
सांख्यसूत्र के चार व्याख्याग्रन्थ उपलब्ध होते हैं- अनिरुद्ध कृत वृति, महादेव वेदान्तिकृत सांख्यवृत्तिसार, विज्ञानभिक्षुकृत सांस्व- प्रवचनभाष्य एवं नागेशभट्टकृत लघुसांख्यसारवृत्ति । अनिरुद्ध की वृन्न इनमें प्राचीनतम है। इस प्राचीनता के कारण इस वृत्ति की एक मर्यादित स्थान है। इस व्याख्या की महत्ता इस बात से भी जानी जा सकती है कि महादेव ने अपनी व्यास्या पूर्णतः इस वृत्ति के आधार पर ही लिखी है। भाष्यकार विश्मनभिक्षु इस वृत्ति से भली- भांति परिचित थे, उन्होंने कई स्थलों पर वृत्तिकार के मतों के खण्डन के लिये प्रबल प्रयास किया है, यद्यपि उन्होंने वृत्तिकार का नाम शब्दतः कही मी नहीं लिया।
अनिरुद्ध की वृत्ति सूत्रवत् स्वल्पाक्षर है और मुख्यतया सूत्रार्थमात्र ही एस वृत्ति में मिलता है। शंकानिरास अदि पर वृत्तिकार ने कहीं- कई स्वल्प चेष्टा की है। दो एक स्थलों में विचार की विस्तृति है। चिरकाल से ही इस वृत्ति का पाठ’ कहीं कही अस्तव्यस्त रहा है । बंगाल के सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् कालीवर वेदान्तवागीश की ने इस वृत्ति के पाठों की अस्तव्यस्तता को अपने सांख्यसूत्र के संस्कर में स्पष्टतया कहा है। इस वृत्ति के पाठ को ब्यवस्थित करने के लिये उन्होंने चेष्टा भी की है। इस कार्य में स्तुत्य परिश्रम रिचार्ड गायें नामक जर्मन विद्वान् का है, जिनका अनिरुद्धवृत्तिसंस्करण (अंग्रेजी अनुवाद, भूमिका आदि के साथ) हमारा सर्वोत्तम अबलम्बन रहा है। गार्नेमहोदय सांख्वशाज में कृतपरिश्रम थे। गाउँकृत संस्करण में जहाँ भी अशुद्धियां प्रतीत हुई हैं, उन सबों का परिहार इस संस्करण में किया गया है और पादटिप्पणो में हमारी दृष्टि की युक्तता का विवे- चन भो कर दिया गया है (विशेत्र स्थलों पर)। यह कहना श्रनुचित न होगा कि वर्त्तमान संस्करण श्रनिरुद्धवृत्ति का शुद्धपाठवहुल संस्करण है।
इस संस्करण का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि अनिरुद्ध द्वारा उद्धृत जिन वचनों के आकरस्थलों का निर्देश गाबें के संस्करण में नहीं दिया गया था, उनका निर्देश भी हमने कर दिया है। कुछ बचन अभी भी अदृष्टाकर हैं। उद्भुत श्लोकों के आकरस्थलों को न जानने के कारण वचनों के पाठ में कहीं-कहीं विपर्यास हो गए थे ( १।५६ सूत्र को पादटिप्पणी में इसका एक उदाहरण द्रष्टव्व हैं )। यह संस्करण इस दोष से प्रायेण मुक्त है, यह जानना चाहिए।
अनिरुद्ध बहुत प्राचीन आचार्य नहीं हैं। इनका समय पञ्चदश शताब्दी है, ऐसा रिचार्डगायें ने कहा है। विद्वदर्य उदयवीर शास्त्री ने गार्वे का मत खण्डन कर पुष्ट प्रमाणों से विस्तार के साथ दिखाया है कि अनिरुद्ध का काल खीष्टीय एकादश शतक के मध्यभाग के लगमन होना चाहिए (सांख्य दर्शन का इतिहास पृ०३०६; पृ०३१२ मी द्रष्टब्य)।
अनिरुद्धवृत्ति के विषय में दो आवश्यक बातें बिचार्य हैं (१) अनिरुद्ध-व्याख्यात सूत्रों का पाठ एवं (२) विज्ञानभिक्षु और अनिरुद्ध के व्याख्यान में पार्थक्य और भेद। ऐसा प्रतीत होता है कि अनिरुद्ध के प्रति भिक्षु श्रद्धापूर्ण दृष्टि नहीं रखते थे। इसका हेतु भी चिन्तनीय है। अनेक, गूढार्थक सांख्यसूत्रों (जैसे चिदवसानो भोगः १।१०४) एवं अध्यवसाय (२०१३ सूत्र आदि पारिभाषिक शब्दों की वृत्तिकार- संमत व्याख्या कहाँ तक समीचीन है, इस पर भी विचार करना आवश्यक है। चूंकि यह संस्करण छात्रोपयोगी है, इसलिये इन विषयों पर यहाँ विचार नहीं किया जा रहा है। हमारे द्वारा संपाद्यमान विज्ञानमित्तुकृत-भाष्य की भूमिका में इन विषयों पर पुष्कल बिचार किया जाएगा।