Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 5 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-पांच गद्य खण्ड)
₹300.00
Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1st edition, 2003 |
ISBN | - |
Pages | 448 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 3 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0005 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-पांच गद्य खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 5) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के माध्यम से संस्कृत वाङ्मय के इतिहास के पञ्चम खण्ड को प्रस्तुत करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक पद्मभूषण आचार्य स्व. बलदेव उपाध्याय जी की भूमिका एवं आशीर्वचन से समलङ्कृत इस खण्ड में संस्कृत वाङ्मय की गद्यविधा के साथ चम्पूकाव्य, कथासाहित्य, नीत्युपदेश आदि अवशिष्ट विधाओं का समावेश किया गया है। इसे विकीर्ण पुष्पों द्वारा पुष्पगुच्छ के रूप में सुधी पाठकों एवं जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत करके खण्ड के सम्पादक डॉ. जयमन्त मिश्र जी ने अनेक बाधाओं को उपेक्षित करते हुए विशिष्ट लेखकों के सत्प्रयासों को ग्रन्थाकार में प्रस्तुत करने के लिए अपनी मनीषा के साथ-साथ दृढप्रतिज्ञता का भी विपुल परिचय दिया है।
वास्तव में गद्य विधा जैसा कि इसकी मूलभूत ‘गद्’ धातु से ही स्पष्ट है कथन को सीथे प्रस्तुत करने की सहज विधा है। यह प्राचीन परम्परा में अल्पप्रचलित रही है क्योंकि लिपिबद्ध करने की परम्परा से कहीं पूर्व परम्परा श्रुति परम्परा रही है जिसमें स्मरणीयता के लक्ष्य से गेयता (छन्द के रूप में) कहीं अधिक प्रचलित रही है। इसलिए सभी भाषाओं के वाङ्मय के इतिहास में प्रथम पद्य या छन्द काव्य ही स्थायित्व पा सके। चाहे वैदिक साहित्य हो या संस्कृत साहित्य, काव्यग्रन्थों की स्थापना तत्कालीन प्रचलित छन्दों के माध्यम से प्रमुख स्थान पा सकी और वही स्मृति के माध्यम से जन-जन तक सस्वर उच्चारण के रूप में स्थायित्व पा सकी। इसलिए गद्य विधा को जनमानस में प्रतिष्ठित करना तथा उसे कालजयी काव्य के रूप में स्थापित करना अपने में अत्यन्त ही दुरूह कार्य था। यद्यपि रसात्मकता अथवा लोकेतर प्रस्तुति की अपनी विशिष्टता में सहज वाक्यों द्वारा अभिव्यक्ति बाधक कदापि नहीं है, लेकिन प्रभाव की दृष्टि से ऐसी रचना में रस-प्रवणता भावों का प्रवाह तथा रचना-वैचित्र्य लाना उतना सरल नहीं है क्योंकि ऐसी रचना अपने अर्थवैचित्र्य एवं भावगाम्भीर्य के द्वारा ही जनसामान्य में प्रभावोत्पादक हो सकती है। यह भी कहा गया है-‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ गद्य ही कवि की (वास्तविक) कसौटी है।
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