Shrimad Bhagwat Maha Purana (श्रीमद्भागवतमहापुराणम्)
₹452.00
Author | Vashudev Sharma Panshikar |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Sanskrit |
Edition | 1st edition, 2023 |
ISBN | 978-93-92989-48-3 |
Pages | 710 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0265 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
श्रीमद्भागवतमहापुराणम् (Shrimad Bhagwat Maha Purana) भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।
भागवत का प्रभाव मध्ययुगीय वैष्णव संप्रदायों के उदय में नितांत क्रियाशील था तथा भारत की प्रांतीय भाषाओं के कृष्ण काव्यों के उत्थान में विशेष महत्वशाली था। भागवत से ही स्फूर्ति तथा प्रेरणा ग्रहण कर ब्रजभाषा के अष्टछापी (सूरदास, नंददास आदि), निम्बार्की (श्रीभट्ट तथा हरिव्यास), राधावल्लभीय (हितहरिवंश तथा हरिदास स्वामी) कवियों ने ब्रजभाषा में राधाकृष्ण की लीलाओं का गायन किया। मिथिला के विद्यापति, बंगाल के चंडीदास, ज्ञानदास तथा गोविंददास, असम के शंकरदेव तथा माधवदेव, उत्कल के उपेन्द्र भंज तथा दीनकृष्णदास, महाराष्ट्र के नामदेव तथा माधव पंडित, गुजरात के नरसी मेहता तथा राजस्थान की मीराबाई – इन सभी संतों तथा कवियों ने भागवत के रसमय वर्णन से प्रेरणा प्राप्त कर राधाकृष्ण की कमनीय केलि का गायन अपने विभिन्न काव्यों में किया है। तमिल, आंध्र, कन्नड तथा मलयालम के वैष्णव कवियों के ऊपर भी भागवत का प्रभाव भी कम नहीं है। भागवत का आध्यात्मिक दृष्टिकोण अद्वैतवाद का है तथा साधनादृष्टि भक्ति की है। इस प्रकार अद्वैत के साथ भक्ति का सामरस्य भागवत की अपनी विशिष्टता है। इन्हीं कारणों से भागवत वाल्मीकीय रामायण तथा महाभारत के साथ संस्कृत की ‘उपजीव्य’ काव्यत्रयी के अन्तर्भूत माना जाता है।
Reviews
There are no reviews yet.