Surdas (सूरदास)
₹45.00
Author | Dr. Ramfer Tripathi |
Publisher | Uttar Pradesh Hindi Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 3rd edition, 2013 |
ISBN | 978-93-82175-12-4 |
Pages | 135 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPHS0043 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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सूरदास (Surdas) गोस्वामी विठ्ठलदास ने जिस अष्टछाप कविमण्डल की स्थापना की थी, सूरदास उसके प्रमुख स्तम्भ हैं। उनकी रचनाओं में ‘सूर सागर’ सर्वाधिक चर्चित है। ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य लहरी’ की गणना भी उनकी प्रमुख रचनाओं में होती है। उनकी रचना के केन्द्र में कृष्ण भक्ति प्रमुख है, जो व्यापक अर्थों में अनन्त सत्ता और मानव के बीच अनन्य सम्बन्धों को अभिव्यक्ति देती है। वात्सल्य और श्रृंगार को समर्पित सूरदास की अनेकानेक पंक्तियाँ लोक में घुली-मिली हैं ‘मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो, ‘मों सो कौन-कुटिल खल कामी’, ‘बसौ मोरे नैनन में नंदलाल’ और ‘ऊधौ, मन नाहीं दस-बीस’ जैसी रचनाओं का लालित्य सभी को आनन्दित करता है।
माना जाता है कि उनका जन्म 1478 ईसवी में हुआ था। भक्तिकाल के कवियों ने, अध्यात्म के मार्ग द्वारा जीवन के प्रति अनुराग पैदा किया। समकालीन बुराइयों के विरुद्ध खड़े होने की शक्ति दी लौकिक जीवन में लोगों को प्राणिमात्र के प्रति भी स्नेहिल बनाया। स्वाभाविक रूप से इस तरह, न केवल तत्कालीन मानव का आत्मविश्वास बढ़ा। चिंतन क्षेत्र व्यापक हुआ, अपितु अवमूल्यनग्रस्त परिवेश के सामने खड़े होने एवं आत्म परिष्कार की समझ और चेतना भी बढ़ी।
सूरदास के सरल कवि व्यक्तित्व को डॉ० रामफेर त्रिपाठी ने पुस्तक ‘सूरदास’ में समग्रता में नियोजित किया है। उनकी रचनाओं पर अच्छी और सारगर्भित चर्चा की है। डॉ० रामफेर त्रिपाठी हिन्दी साहित्य के प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं और विशेषकर भक्तिकाल के कवियों पर उनका विशद अध्ययन है जो इस रचना ‘सूरदास’ में दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने इस पुस्तक को 12 अध्यायों में बाँटा है – परिवेश, जीवनयात्रा, सर्जनाएँ. तत्व चिंतन, भाव भक्ति, सौंदर्य संचेतना, काव्य संवेदना, प्रकृति परिवेश, शिल्प सौष्ठव, भ्रमर गीत, आकलन और सूर-सम्प्रदाय। इन अध्यायों के बीच सूरदास के विहंगम व्यक्तित्व पर समग्रता से प्रकाश डालने का सफल प्रयास डॉ० त्रिपाठी ने किया है। भक्तिकाल की चार प्रमुख धाराओं – ज्ञानाश्रयी, प्रेमाश्रयी, कृष्णाश्रयी और रामाश्रयी में निश्चय ही यह पुस्तक कृष्णाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास के अमूल्य योगदान को प्रतिपादित करने में सहयोगी है।
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