Tarkamritam (तर्कामृतम्)
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Author | Dr. Ganesh Datt Shastri Shukla |
Publisher | Sharda Sanskrit Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2008 |
ISBN | - |
Pages | 48 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 1 x 17 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSS0040 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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तर्कामृतम् (Tarkamritam) ऐहलौकिक तथा पारमार्थिक समस्त पदार्थों के निरूपण करने से दर्शनशास्त्रों की मान्यता विश्वविदित है। दर्शन भी आस्तिक नास्तिक भेद से दो प्रकार के होते हैं। आस्तिकदर्शन-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त आदि छः प्रकार के हैं। इनके प्रवर्त्तक भी क्रम से गौतम, कणाद, कपिल, पतञ्जलि, जैमिनि तथा भगवान् वेदव्यास प्रसिद्ध हैं।
जैसा कि
गौतमश्च कणादश्च कपिलश्च पतञ्जलिः ।
जैमिनिव्यासनामानौ षट्शास्त्राणाम् प्रवर्त्तकाः ।।
वैदेशिक अनुसन्धानकर्ताओं ने भी हमारे भारतीयदर्शनों पर बड़ी ही श्रद्धा व्यक्त की है। नास्तिकदर्शनों में प्रमुख रूप से जैन, बौद्ध तथा चार्वाकदर्शन की गणना होती है। नास्तिकदर्शनों के कुतकों का निराकरण आस्तिक- दर्शनकारों ने बड़ी ही गम्भीरता से किया है।
काणादं पाणिनीयं च सर्वशास्त्रोपकारकम्।
इस तथ्योक्ति से सर्वविदित सिद्धान्त है कि काणाद न्यायवैशेषिक के तथा पाणिनि व्याकरण शास्त्रों के उपकारक हैं। परन्तु तर्कशास्त्र की आवश्यकता प्रत्येक स्थल में पड़ती रहती है। यहाँ तक कि धर्मशास्त्रीय निर्णयों पर भी-
यस्तर्केणानुसन्धत्ते स धर्म वेद नेतरः ।
अर्थात् धर्म का ज्ञान भी तर्कों से पुष्ट करना अपेक्षित होता है। साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि के विषय भी तर्कशास्त्र के बिना नहीं चल पाते। अत एव विविध परीक्षाओं में तर्कशास्त्र की अनेक पुस्तकें पाठ्यक्रमों में निर्धारित है। यद्यपि तर्कसंग्रह, तर्कभाषा, तर्कप्रकाश, बृहत्तर्कप्रकाश, तर्ककौमुदी आदि पुस्तकें लघुरूप में न्यायवैशेषिकशास्त्रों के स्वरूपपरिचायन के लिये प्रायः एकस्वरूप में पायी जाती हैं, तथापि उनकी अपेक्षा अत्यन्त लघु एवं संक्षिप्त तर्कत्तत्त्वबोधन का कार्य जो तर्कामृतनामक पुस्तिका से प्राप्य है वह अन्य से नहीं। इसके लेखक श्री जगदीश भट्टाचार्य नाम के प्रसिद्ध नैयायिक हैं। नव्यन्यायशास्त्र के यशस्वी कर्णधार श्रीजगदीश तर्कालंकार से ये लेखक भिन्न हैं। क्योंकि तर्कालङ्कार की भाषा, पाण्डित्य, लेखनशैली से इनकी पर्याप्त भिन्नता है। इन्होंने प्रशस्तपादभाष्य की छाया से कई स्थलों पर प्रसिद्ध न्यायग्ग्रन्थों से अपना मतभेद रखा है। जैसे-स्मृतिनिरूपणादि। प्रस्तुत तर्कामृतम् पुस्तक में छात्रों के हित को दृष्टि में रखते हुए विषयवस्तु एवं क्लिष्ट स्थलों की स्पष्ट संस्कृत हिन्दी व्याख्या है। जिससे छात्रों को पुस्तक पढ़ते ही सद्यः विषय का निरूपण स्वतः हो जाता है।
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