Vastu Shastra Ke 101 Upaya (वास्तुशास्त्र के 101 उपाय)
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Author | E.S.B.R Mishra & M.M Mani |
Publisher | Sharda Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 2006 |
ISBN | - |
Pages | 104 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SSS0080 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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वास्तुशास्त्र के 101 उपाय (Vastu Shastra Ke 101 Upaya) जिस भूमि पर प्राणी निवास करें उसे बास्तु कहते हैं। वास्तु शास्त्र गृह निर्माण का शास्त्र है। वास्तव में इस विज्ञान में विशाल साहित्य है जिसे पढ़ने में पूरा जीवन लग सकता है। इस भवन निर्माण कला में विज्ञान एवं तकनीकी के साथ आध्यात्म का समावेश है। वास्तु शब्द को अलग-अलग कर देखा जाय तो इसमें पंच महाभूत समाहित हैं। व् = वायु, आ = अग्नि, स् पृथ्वी, तू आकाश, उ जल। इनमें वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी को अनुकूल बनालें तो आकाश अपने आप अनुकूल हो जायेगा। 64 प्राचीन शास्त्रों में से यह एक है। इस शास्त्र पर 5 कलाएँ आधारित हैं। 1. मूर्ति शाख, 2. छन्द शास्त्र 3. संगीत शास्त्र 4. नृत्य शास्त्र 5. वास्तु शास्त्र। इस शास्त्र के आदि प्रर्वतक ब्रह्मा है। विश्वकर्मा एवं मय दो महान शिल्पी इस शास्त्र के उपदेष्टा माने गये हैं।
वेद समस्त भारतीय ज्ञान विज्ञान का एकमात्र आधार हैं। हरमन जैकोवी जैसे पाञ्चाल्य ज्योतिर्विद ने वेदों का रचना काल ईसा से 4500 वर्ष पूर्व माना है। पण्डित बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम अदिति युग का समय ईसा से 6500 वर्ष पूर्व माना है। ऋग्वेद में असुर संहारक देवताओं के राजा इन्द्र की विजयगाथाओं का रोचक उल्लेख है। ऋग्वेद में प्रयुक्त, रथेष्ट, विमान एवं गृह शब्द यह सिद्ध करता है कि अदिति युग में भी भारतीय भवन निर्माण कला में पटु थे। इन्द्र के लिए अमोघ आयुध वज्र का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था।
विश्वकर्मा एवं उनके भ्राता मय सम्पूर्ण विश्व के सर्वप्रथम वास्तुशास्त्री एवं अभियन्ता थे जिन्हें अस्त्र-शस्त्र, गृह, राज-प्रसाद, नगर, मन्दिर तथा मूर्ति निर्माण में विशेष दक्षता हस्तगत थी। त्रेता में अयोध्या तथा लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। उन्होंने ही भगवान् शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुर्दशन चक्र एवं अनेक अमोघ आयुध निर्मित कर देव-दनुजों को प्रदान किये थे। द्वापर युग में इन्द्रप्रस्थ एवं द्वारकापुरी का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। उनके सहोदर मय ने इन्द्रप्रस्थ में सुमेधा नामक सभागार का निर्माण किया था जिसमें बैठने पर मानव भूख, प्यास एवं चिन्ता से मुक्त हो जाता था। सभागार के मध्य एक सरोवर का निर्माण किया गया था जिसमें दुर्योधन के पतन का उल्लेख हुआ है। यह सभागार वास्तु शास्त्र के अनुसार ब्रह्मस्थान में किया गया था जो अशुभ था। इसे जानबूझकर भगवान कृष्ण ने बनवाया था उन्हें यह पूर्व ज्ञात था कि इन्द्रप्रस्थ कौरवों के हाथ में चला जायेगा जो उनके विनाश का कारण बनेगा। इसका रहस्योद्घाटन स्वयं भगवान कृष्ण ने मय के पूछने पर किया था।
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