Dashrupakam (दशरूपकम्)
₹127.00
Author | Dr. Ramji Upadhyay |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2nd edition, 2021 |
ISBN | 81-87415-14-2 |
Pages | 320 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0066 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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दशरूपकम् (Dashrupakam) भारतीय नाट्यशास्त्र की परम्परा में धनञ्जय ने दशरूपक की रचना दसवीं शती ईसवी में की है। यह ग्रन्ध इतना उपादेय सिद्ध हुआ कि परवर्ती युग में न केवल विद्यार्थियों के ही, अपितु आचायों के भी बीच सबसे बढ़कर लोकप्रिय बन गया। परवर्ती अचार्यों ने अपनी नाट्यशास्त्रीय कृतियों का इसे बहुधा उपजीव्य बनाया है। ऐसी स्थिति में इसके समक्ष भरत के नाट्यशास्त्र की परम्परा में लिखे मौलिक और व्याख्यात्मक ग्रन्थों को जड़ न जम पायी। आज भारत के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में दशरूपक और धनिक विरचित उसकी अवलोक टीका विविध परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं। दशरूपक की उपर्युक्त महिमा को देखते हुए यह आवश्यक था कि इसके मूल पाठ का वैज्ञानिक विधि से संशोधन हुआ होता और साथ ही इसकी कारिकाओं का नाट्यशास्त्रीय निकष पर परीक्षण करके तथा मानक नाटकों पर उनकी प्रायोगिक समीक्षा करते हुए बताया गया होता कि कहाँ तक दशरूपक में सत्यांश है और कहाँ तक उसकी कारिकायें और उनकी अवलोक टीका भरत के नाट्यशास्त्र के विरुद्ध होने के साथ ही निराधार और चिन्त्य हैं। मैंने इसी समीक्षात्मक दृष्टि से दशरूपक का लगभग ३० वर्षों तक अध्ययन और अध्यापन किया है और अपने महत्त्वपूर्ण अनुसन्धानों का प्रकाशन ‘दशरूपक तत्त्व दर्शनम्’ नामक ग्रन्थ में किया है। इतने से ही मुझे सन्तोष न हुआ। इसी ऊहापोह में मैंने दशरूपक की कारिकाओं और उसकी अवलोक टीका की प्रत्येकशः समीक्षात्मक व्याख्या अपनी नान्दी टीका के साथ लिखी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दशरूपक और अवलोक की चिन्त्य प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है। दशरूपक की व्याख्या-परम्परा में इस प्रकार का यह प्रथम उपक्रम है। अब तक के संस्कृत और हिन्दी के टीकाकार ‘मक्षिकास्थाने मक्षिका’ रख कर और अपनी ओर से भी अशुद्धियों को जोड़ कर विद्यार्थियों को इस विषय का समालोचनात्मक ज्ञान देने में असमर्थ रहे हैं। यह नान्दी टीका से पद-पदे स्पष्ट होगा।
जहाँ तक दशरूपक की कारिकाओं और अवलोक के शुद्ध पाठ का सम्बन्ध है, अब तक के टीकाकार प्रायः आँख मूँद कर अशुद्ध पाठ का अनुसरण करते रहे हैं। पाठशोधन की दिशा में प्रथम सफल कृति अड्यार से प्रकाशित टी० वेङ्कटाचार्य द्वारा सम्पादित दशरूपक है, किन्तु इसमें भी कतिपय त्रुटियों और अभाव है, जिनकी यथासम्भव पूर्ति करने का प्रयास मैंने किया है। प्रस्तुत संस्करण में दशरूपक और अवलोक का शुद्धतम पाठ वैज्ञानिक सरणि पर प्रस्तुत किया गया है।
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