Ratnavali (रत्नावली)
₹85.00
Author | Dr. Awadhesh Kumar Chaubey |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2003 |
ISBN | 81-87415-46-0 |
Pages | 126 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0030 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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रत्नावली (Ratnavali) ‘रत्नावली’ के प्रस्तुत संस्करण का पुनरुद्धार, सबसे पहले, इटली के विद्वान् डॉ० जी०टुच्ची ने पुरातन पाण्डुलिपियों की सहायता से किया था। उन्होंने इसे सबसे पहले जे०ए०आर०एस० (१९३४-३५) में प्रकाशित कराया था। ये पाण्डुलिपियाँ जीर्ण-शीर्ण और बहुत अष्ट थी, अतएव वे सम्पूर्ण ग्रन्थ का उद्धार नहीं कर पाये। जितना उन्होंने प्रकाशित कराया था, उसी को बाद में, सन् १९६० ई० में, मिथिला विद्यापीठ, दरभंगा ने ‘मध्यमकशास्त्र’ का प्रकाशन करते समय परिशिष्ट के रूप में ‘रत्नावली’ शीर्षक के अन्तर्गत पुनः प्रकाशित करके, पाठकों को सुलभ करा दिया। विद्यापीठ के तत्कालीन विश्रुत विद्वान् डॉ० पी०एल० वैद्य के सम्पादकत्व में ‘मध्यमकशास्त्र’ के परिशिष्ट के रूप में प्रकाशित ‘रत्नावली’ संस्कृत में है और ज्यों की त्यों है, जैसा प्रो० टुच्ची ने प्रकाशित कराया था। बाद में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के दर्शन संकायाध्यक्ष, गुरुवर्य प्रो० महाप्रभुलाल गोस्वामी और बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के डॉ० चन्द्रनारायण मिश्र द्वारा इसका शब्दानुवाद करके, पुस्तकाकार में पृथक् रूप से प्रकाशित किया गया, किन्तु उसमें परम्परागत बौद्ध-दर्शन के जिज्ञासुओं के लिए, बौद्ध पद-पदार्थों के अनुसार व्याख्येय सामग्री का नितान्त अभाव था, जिसकी पूर्ति के लिए, पाठकों के समक्ष ‘रत्नावली’ की यह ‘विमला’ व्याख्या यथामति प्रस्तुत की जा रही है।जैसा कि कहा जा चुका है, यह भी डॉ० टुच्ची के उसी पुनरुद्भुत अंश की हो व्याख्या है।
सम्पूर्ण ग्रन्थ अभी संस्कृत में अनुपलब्ध है किन्तु भोट-भाषा (तिब्बती) में अभी भी सुरक्षित है। इसके साथ ही एक भारतीय पंडित अजित मित्र की टीका भी है जो अपने मूल स्वरूप संस्कृत में न होकर, तिब्बती में ही अनुवाद परम्परा से सुरक्षित है। इस ग्रन्थ को टीका के साथ, संस्कृत में रिस्टोरेशन/पुनर्स्थापित करने हेतु, केन्द्रीय उच्च तिब्बती संस्थान, सारनाथ, वाराणसी के आचार्य नवाङ् समतेन विगत कई वर्षों से प्रयत्नशील हैं। निकट भविष्य में, यदि यह महनीय ग्रन्थ तिब्बती संस्थान से, इसके कुशल निदेशक गेशे समतेन की व्यस्त के बावजूद, प्रकाशित हो जाता है, तो अगले संस्करण में ‘विमला’ व्याख्या को सम्पूर्णतया सहित नये सन्दर्भ प्रस्तुत करने का यत्न किया जा सकेगा। उस समय आचार्य अजित मित्र की टीका का भी सम्बल रहेगा । तब तक जितना अंश संस्कृत में उपलब्ध है, उतने की ही व्याख्या से, संतोष कर लेने की विवशता है। यद्यपि अपनी ओर से, जितना अंश संस्कृत में उपलब्ध है, उसमें वर्णित पद-पदार्थों का, बौद्ध दर्शन की परम्परा, विशेषतः संस्कृत-बौद्धदर्शन की महायान परम्परा के परिप्रेक्ष्य में, यत्र-तत्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, फिर भी इसमेंत्रुटियों से इनकार नहीं किया जा सकता। कई स्थलों पर, दुरूह शास्त्रीयता से बचते हुए, जन-सामान्य की प्रचलित और सुगम शब्दावली में, विषय वस्तु को प्रकट करने चेष्टा की गई है। इसमें जो कुछ उपयुक्त बन पड़ा है, वह महनीय बौद्ध-परम्परा का है और गुरुजनों की कृपा का परिणाम है। जो त्रुटियाँ हैं, वे अपनी है। इसके लिए अत्यन्त विनम्रतापूर्वक सुधी जनों से क्षमा प्रार्थी हूँ। विद्वज्जनों से प्रार्थना यह भी है कि वे त्रुटियों की ओर इंगित करते हुए, अपना परामर्श देने की कृपा करेंगे जिससे आगामी संस्करण में उनका परिमार्जन किया जा सके।
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