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Markswad Aur Ramrajaya (मार्क्सवाद और रामराज्य)

200.00

Author Sri Karpatriji Maharaj
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition 12th edition
ISBN -
Pages 1152
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0010
Other Code - 698

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Description

मार्क्सवाद और रामराज्य (Markswad Aur Ramrajaya) ‘मार्क्सवाद और रामराज्य’ पुस्तक प्रथम बार सं० २०१४ (१९५७ ई०) में गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित हुई थी। पूज्यपाद श्री स्वामी करपात्री जी महाराज अत्यन्त आस्तिक, मेधावी, दिव्य प्रतिभा-सम्पन्न, दार्शनिक विद्वान् और महान् चिन्तन शील मनीषी थे। उन्हें प्राच्य-पाश्चात्य राजनीति का भी सम्यक् ज्ञान था। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन्होंने वर्तमान नास्तिकता पूर्ण राजनीति-दर्शन की समालोचना के साथ-साथ भारतीय राजनीति-दर्शन से सम्बन्धित रामराज्य के आदर्श स्वरूप को प्रस्तुत किया है।

अब तक इस महनीय ग्रन्थ के कई संस्करण निकल चुके हैं। पुनः इस नवीन संस्करण को प्रस्तुत करते हुए हमें विशेष आनन्द का अनुभव हो रहा है। प्रातः स्मरणीय श्रीस्वामी जी महाराज ने इस पुस्तक में आजसे प्रायः ६० वर्ष पूर्व जो स्थापनाएँ प्रस्तुत की थीं तथा जो बातें लिखीं, वे आज भी सर्वतोभावेन सत्य सिद्ध हो रही हैं। मार्क्सवादी दर्शन को आधार बनाकर स्थापित किये गये तमाम राज्यों-साम्राज्यों का अस्तित्व छिन्न- भिन्न स्थितिमें है।

जिन दिनों यह पुस्तक लिखी गयी थी; उस समय पूरे विश्व में मार्क्सवादी दर्शन के सिद्धान्तों की धूम मची हुई थी। चतुर्दिक् उनका डंका बज रहा था। भारत में बड़े जोर-शोरसे इस विदेशी मूल के पौधे को लगाने की तैयारियाँ चल रही थीं। धर्म, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, राजनीति सभी क्षेत्रों में एक उच्छृंखल किंतु संगठित अराजकता और उच्छेदवाद का भी प्रचार-प्रसार किया जा रहा था। भारतीय शास्त्र, धर्म, दर्शन आदि से अपरिचित और अल्प परिचित बुद्धि जीवियों; विशेषकर नव युवकों पर इस विचार धारा का असर बढ़ता जा रहा था। ऐसे विषम वातावरण में श्री स्वामी जीने इस पुस्तक के द्वारा उन समस्त भ्रान्तियों को अपने पुष्ट प्रमाणों और प्रखर तर्की द्वारा छिन्न-भिन्न कर भारत के ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व-मानवता के हितमें एक महान् कार्य किया था, यही कारण था कि जिन विद्वानों, विचारकोंका श्रीस्वामीजीसे मतभेद था, उन्होंने भी अन्ततः उनके निष्कर्षोंकी सत्यता स्वीकार की। अब तो विश्व-धरातलपर मार्क्सवादी दर्शन की असफलता ने पुष्कल रूपों में यह प्रमाणित कर दिया है कि शान्ति और विकास का मार्ग वही है, जिसे श्री स्वामी जी ने प्रस्तुत पुस्तक में ‘रामराज्य’ के नाम से अभिहित किया है। उन्होंने लिखा है ‘शास्त्र-धर्म-नियन्त्रित शासन ही रामराज्य है, इसमें प्रजा की रुचि तथा सम्मतिका पूरा ध्यान रखा जाता है।’

स्वामी जी महाराज ने यह विचार किया कि शासन के अधार्मिक और अनैतिक प्रवाह को बिना राजनीति में प्रवेश किये रोका नहीं जा सकता, तब महाराज ने ‘रामराज्य परिषद्’ की स्थापना की, जो पूर्ण राजनीतिक संस्था थी। भगवान् रामके राज्यमें जो नियम और कानून थे, वे ही इस संस्था के नीति गत सिद्धान्त थे। महाराज के मन में यह कल्पना थी कि भारत-जैसे देश में रामराज्य-जैसा शासन होना चाहिये, जहाँ सब को समान रूप से न्याय सुलभ हो सके तथा यहाँ की जनता सर्वविध सुखी हो सके।

अब हमें सर्वविध उसी पुनीत, पावन, शक्ति-शील-सौन्दर्य-समन्वित रामराज्य के संस्थापनार्थ कृत संकल्प होना है। भगवत्कृ पासे इस लोक-कल्याणकारी पवित्र ग्रन्थ का यह नवीन संस्करण हम इसी संकल्प के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं।

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