Shri Krishna Sandesh Set Of 3 Vols. (श्री कृष्णसन्देश 3 भागो में)
₹810.00
Author | Swami Maheshanad Giri |
Publisher | Dakshinamurty Math Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2023 |
ISBN | - |
Pages | 1786 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | dmm0053 |
Other | Shri Krishna Sandesh Set Of 3 Vols. |
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CompareDescription
श्री कृष्णसन्देश 3 भागो में (Shri Krishna Sandesh Set Of 3 Vols.) वैदिक सनातन धर्म की आत्मा वेद है। वेदों को आचार्यों ने सामान्यतया त्रिकाण्डात्मक माना है। इनमें कर्मकाण्ड साधकों के लिये प्राथमिक सोपान है। उपासना काण्ड साधकों के चित्त की एकाग्रता का द्वितीय साधन है। ज्ञानकाण्ड मानव ही नहीं प्राणिमात्र का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष, ब्रह्मप्राप्ति का साधन माना गया। वेदों के इन तीनों काण्डों का अनुशीलन साधारण जन के लिये अत्यन्त कठिन है। इसी बात को ध्यान में रखकर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की। शतसाहस्त्री महाभारत के मध्य भाग में श्रीमद्भगवद्गीता का गुम्फन भगवान् वेदव्यास ने किया। ‘व्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्येमहाभारतम्’ कहा गया है। श्रीमद्भगवद्गीता को स्वयं भगवान् ने अर्जुन को उपदेश के रूप में दिया। यह भी अठारह अध्यायों में विभक्त है। इन अठारह अध्यायों को विषयानुक्रम से तीन विभाग में किया जाये तो यह भी त्रिकाण्डात्मक ही निकलती है। विद्वानों ने इसे इसी प्रकार विभाजित किया।
एक से लेकर छः अध्याय तक को किसी न किसी प्रकार कर्मकाण्डात्मक माना गया है। यद्यपि वेदों के कर्मकाण्ड कुछ भिन्न प्रकार का है, कामना के अनुरूप अनेक कर्म वेदों में वर्णित हैं, तथापि गीता में समग्र वैदिक कर्मों के अनुष्ठान को मनुष्य के चित्त-शुद्धि का साधन वह भी ईश्वरार्पण बुद्धि से अनुष्ठीयमान होने पर माना गया है। इसी को भगवान् ने कहा- “यज्ञार्थात् कर्मणोन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः”, “मुक्तसङ्गः समाचर”। कर्म बन्धन का कारण है यदि वह यज्ञ के लिये आचरित न हो तो वह वेद-निर्दिष्ट कर्म यज्ञार्य है तो चित्त-शुद्धि द्वारा मोक्ष में, साक्षात् तो नहीं परम्परया मोक्ष-सिद्धि में कारण है। इन सब बातों की विशद व्याख्या भगवान् ने एक से लेकर छठे अध्याय तक की है। सातवें अध्याय से बारहवें अध्याय तक भगवान् ने वैदिक उपासना को स्मार्त भक्ति का नाम देकर निर्वचन किया है। तेरहवें अध्याय से अठारहवें अध्याय तक मोक्ष-प्रयोजक ज्ञान का ही ससाधन निरूपण भगवान् ने किया।
भारत वर्ष में जितने भी आचार्य हुए सब ने गीता पर अपना भाष्य अपने-अपने ढंग से किया, पर भगवान् आचार्य शंकर भगवत्पाद के भाष्यों को सारे संसार के मनीषियों ने वास्तविक भाष्य के रूप में मान्यता प्रदान की है। यही कारण रहा भगवान् शंकराचार्य को जगहुरु की उपाधि मिली। बाद में अन्य आचार्यों ने भी अपने नाम के पीछे जगहुरु शब्द जोड दिया। विचारकों के हृदय का (ज्ञान) कमल तो भगवान् आचार्य शंकर के भाष्य से ही खिलता है। बारह सौ से भी ज्यादा वर्षों से आचार्य मधुसूदन सरस्वती, श्री शंकरानन्द सरस्वती, स्वामी आनन्द गिरि आदि महान् तत्त्वेत्ताओं ने भी अपने जीवन का अधिकांश समय भगवान् आचार्य शंकर के भाष्य में ही लगाया ऐसा उनके ग्रन्थों के अध्येताओं को अज्ञात नहीं है।
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