Siddhanta Shiromani Set of 2 Vols. (सिद्धांतशिरोमणि: 2 भागो में)
₹1,445.00
Author | Pt. Satyadeva Sharma |
Publisher | Chaukhamba Surbharti Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | 978-93-80326-17-7 |
Pages | 840 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 7 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SUR0011 |
Other | Dispatched in 3 days |
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सिद्धांतशिरोमणि: 2 भागो में (Siddhanta Shiromani Set of 2 Vols.) भास्कराचार्य ने सिद्धान्तशिरोमणि ग्रन्थ की रचना अपने सभी पूर्ववती आचार्यों के ग्रन्थों से नई-नई तथा प्रामाणिक बातों का संकलन करके की है। यह बात मुझे इस ग्रन्थ की प्रस्तुत भाषाटीका लिखने के क्रम में प्रतीत हुई। आचार्य ने ब्रह्मगुप्त को अपने ग्रन्थ-सिद्धान्त का मूल आधार बनाया है-इस बात का तो उन्होंने उल्लेख किया है; लेकिन अन्य जिन-जिन आचायों के ग्रन्थों से जिन-जिन सिद्धान्तों तथा सूत्रों को अपने ग्रन्थ में समाविष्ट किया है, उसका उल्लेख उन्होंने कही भी अपने ग्रन्थ में नहीं किया है।
भास्कराचार्य ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि ग्रन्थ में ब्रह्मगुप्त के अतिरिक्त वराहमिहिर, बटेश्वर, लल्लाचार्य, आर्यभट (द्वितीय), श्रीपति, सुर्यसिद्धान्त, मुज्ञ्जालाचार्य, भास्कर (प्रथम) आदि आचार्यों के ग्रन्थों से भी बहुत-सी नई बातें अपने ग्रन्थ में समाविष्ट की हैं। इसी कारण से भास्कराचार्य का यह ग्रन्थ अधिक विख्यात हुआ तथा ग्रन्थ के साथ-साथ भास्कराचार्य को भी प्रशंसा प्राप्त हुई।
प्रस्तुत टीका में मैंने भास्करोक्त श्लोकों की हिन्दी व्याख्या के पश्चात् विशेष विवरण में अन्य प्रमुख-प्रमुख आचायों के ग्रन्थों के वे उद्धरण भी दिये हैं, जिनमें उन्होंने भास्करोक्त बात का ही प्रतिपादन किया है। इससे यह सिद्ध हो आता है कि सिद्धान्तशिरोमणि ग्रन्थ पूर्ववर्ती आचार्यों के ग्रन्थों के सिद्धान्तों तथा सूत्रों का ही संकलनमात्र है। भास्कराचार्य ने स्वयं का कोई विशेष सूत्र या सिद्धान्त इस ग्रन्थ में प्रतिपादित नहीं किया है। भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ में वेध से प्राप्त गणनाओं को ही पूर्व ग्रन्थों की अपेक्षा बदला है तथा जहाँ अन्य ग्रन्थों के स्वीकार अंकमानों में थोड़ा-थोड़ा अन्तर प्रतीत हुआ है, वहाँ ब्रह्मगुप्त के कहे अमानों को स्वीकार कर लिया है; लेकिन अन्य आचार्यों के मानों को त्यागने का कोई कारण नहीं बताया है।
प्रस्तुत टीका के द्वारा पाठकों को सिद्धान्तशिरोमणि के सिद्धान्तों के साथ-साथ अन्य पूर्ववर्ती ग्रन्थों के सिद्धान्तों का भी अध्ययन स्वतः हो सकेगा।
प्रस्तुत व्याख्या के साथ ही नये अन्वेषणों के नये आयाम भी खुलेंगे, जिनमें अन्य आचार्यों द्वारा कथित अतिरिक्त सिद्धान्तों तथा सूत्रों के शुद्धता की परीक्षा भी की जा सकेगी। उनमें थोड़ा-बहुत सुधार करके नये सिद्धान्त व सूत्र भी बनाये जा सकेंगे तथा आधुनिक समय के अति सूक्ष्म नथा शुद्ध मानों से उनकी तुलना भी की जा सकेगी।
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