Sri Vishnu Sahastranam (श्रीविष्णुसहस्त्रनाम)
₹50.00
Author | Bhola |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 33rd edition |
ISBN | - |
Pages | 272 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 1 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0103 |
Other | Code - 819 |
9 in stock (can be backordered)
CompareDescription
श्रीविष्णुसहस्त्रनाम (Sri Vishnu Sahastranam) महाभारत में भगवान्के अनन्य भक्त पितामह भीष्म द्वारा भगवान् के जिन परम पवित्र सहस्त्र नामों का उपदेश किया गया, उसी को श्रीविष्णुसहस्रनाम कहते हैं। भगवान्के नामों की महिमा अनन्त है। हीरा, लाल, पन्ना सभी बहुमूल्य रत्न हैं पर यदि वे किसी निपुण जड़ियेके द्वारा सम्राट्के किरीटमें यथास्थान जड़ दिये जायँ तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है और अलग- अलग एक-एक दाने की अपेक्षा उस जड़े हुए किरीटका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता है। यद्यपि भगवान्के नाम के साथ किसी उदाहरण की समता नहीं हो सकती, तथापि समझने के लिये इस उदाहरण के अनुसार भगवान्के एक सहस्र नामों को शास्त्र की रीति से यथास्थान आगे-पीछे जो जहाँ आना चाहिये था-वहीं जड़कर भीष्म-सदृश निपुण जड़ियेने यह एक परम सुन्दर, परम आनन्द प्रद अमूल्य वस्तु तैयार कर दी है।
एक बात समझ रखनी चाहिये कि जितने भी ऐसे प्राचीन नामसंग्रह, कवच या स्तवन हैं वे कवि की तुक बन्दी नहीं हैं। सुगमता और सुन्दरता के लिये आगे-पीछे जहाँ-तहाँ शब्द नहीं जोड़ दिये गये हैं। परन्तु इस जगत् और अन्तर्जगत्का रहस्य जाननेवाले, भक्ति, ज्ञान, योग और तन्त्रके साधनमें सिद्ध, अनुभवी पुरुषोंद्वारा बड़ी ही निपुणता और कुशलताके साथ ऐसे जोड़े गये हैं कि जिससे वे विशेष शक्तिशाली मन्त्र बन गये हैं और जिनके यथा-रीति पठन से इहलौकिक और पारलौकिक कामना-सिद्धि के साथ ही यथाधिकार भगवान्की अनन्य भक्ति या सायुज्य मुक्तितककी प्राप्ति सुगमता से हो सकती है। इसीलिये इनके पाठ का इतना माहात्म्य है और इसीलिये सर्वशास्त्रनिष्णात परम योगी और परम ज्ञानी सिद्ध महापुरुष प्रातः स्मरणीय आचार्य वर श्रीआद्यशङ्कराचार्य महाराज ने लोक कल्याणार्थ इस श्रीविष्णुसहस्रनाम का भाष्य किया है। आचार्य का यह भाष्य ज्ञानियों और भक्तों-दोनों के लिये ही परम आदर की वस्तु है।
Reviews
There are no reviews yet.