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Upanayan Sanskar Paddhati (उपनयन संस्कार पद्धति)

20.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Sanskrit & Hindi
Edition 4th edition
ISBN -
Pages 95
Cover Paper Back
Size 21 x 1 x 14 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0044
Other Code - 2183

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Description

उपनयन संस्कार पद्धति (Upanayan Sanskar Paddhati)  स्त्रियोंको विवाहसंस्कारसे ही द्विजत्वकी प्राप्ति हो जाती है तथा यज्ञोपवीत (जनेऊ)-धारण किये हुए व्यक्तिसे विवाह होनेपर पत्नी भी उपनीत हो जाती है, उनके लिये अलगसे उपनयनका विधान नहीं है। स्त्रियोंका विवाह-संस्कार ही यज्ञोपवीत-संस्कार है- ‘वैवाहिको विधिः स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः।’ (मनुस्मृति २। ६७) इस प्रकार उपनयन-संस्कार जीवनके लिये आवश्यक एवं उपयोगी संस्कार है। इस पुस्तकमें उपनयनकी शास्त्रीय विधि दी गयी है।

उपनयन-संस्कारके अनन्तर उसी दिन वेदारम्भ-संस्कार कर लेते हैं, जैसा कि इस संस्कारके नामसे ही स्पष्ट है कि इस संस्कारमें आचार्यके द्वारा ब्रह्मचारीको अपनी वेदशाखाका ज्ञान और मन्त्रोपदेश कराया जाता है। योगियाज्ञवल्क्यने बताया है कि आचार्य उपनयन करके बालकको महाव्याहृतियोंके साथ वेदका अध्ययन कराये और उसे शौचाचारकी शिक्षा प्रदान करे – उपनीय गुरुः शिष्यं महाव्याहृतिपूर्वकम्। वेदमध्यापयेदेनं शौचाचाराँश्च शिक्षयेत् ॥

यहाँ इस पुस्तकमें उपनयनके अनन्तर वेदाध्ययनकी विधि दी गयी है। तदनन्तर समावर्तन-संस्कारकी प्रक्रिया भी दी गयी है। समावर्तनका अर्थ है गुरुकुलसे शिक्षा ग्रहणकर गुरुकी आज्ञासे अपने घर वापस आना। यह शिक्षा-प्राप्तिका दीक्षान्त-संस्कार है। इस संस्कारमें ब्रह्मचर्याश्रम – विद्याध्ययनकी पूर्णता होती है और फिर विवाहके अनन्तर गृहस्थाश्रममें प्रवेशकी अधिकार-सिद्धि होती है, अब वह ब्रह्मचारी नहीं, अपितु स्नातक कहलाता है। ब्रह्मचर्यके चिह्न मेखला आदिका त्याग करके जटा-लोम आदिका छेदन करके गार्हस्थ्यके उपयुक्त चन्दन, पुष्पमाला, पगड़ी, वस्त्राभूषण तथा अलंकार आदिका धारण करता है। गुरुद्वारा उसे दीक्षान्त उपदेश – ‘सत्यं वद, धर्मं चर, मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव’ आदिका उपदेश प्राप्त होता है। इस प्रकार समावर्तन-संस्कारकी पूर्णता होती है।

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