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Vedantsar (वेदान्तसारः)

184.00

Author Shri Sadanand Yati
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN -
Pages 188
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code dmm0072
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Description

वेदान्तसारः (Vedantsar) यद्यपि ‘वेदान्तसार’ अत्यन्त बोधगम्य भाषा में प्रारम्भिक अध्येताओं के लिए लिखा गया है, परन्तु इस पर संस्कृत में अनेक विद्वानों के द्वारा व्याख्याएँ लिखित हैं। अब तक उनमें से तीन व्याख्याएँ प्रकाशित हुई हैं- १) श्री नृसिंह सरस्वती की सुबोधिनी व्याख्या, २) श्री रामतीर्थ यति की विद्वन्मनोरञ्जिनी व्याख्या तथा ३) श्री आपदेव की बालबोधिनी व्याख्या।

नृसिंह सरस्वती की सुबोधिनी व्याख्या इन समस्त व्याख्याओं में प्राचीनतम है। सुबोधिनी व्याख्या के लेखक नृसिंह सरस्वती काशी में ही विश्वनाथ मन्दिर के आसपास कहीं रहते थे, ऐसा इनके द्वारा अपनी टीका की समाप्ति के अवसर पर लिखित मङ्गलश्लोकों में काशीपुराधीश्वर विश्वनाथ के प्रति श्रद्धा को देखकर पता चलता है। उन श्लोकों में अपने वाराणसी का निवासी होने का सुस्पष्ट लेखन इन्होंने किया है। इनके समय के बारे में हम पिछले पृष्ठों में चर्चा कर आये हैं। इनके गुरु का नाम था कृष्णानन्द। ऐसा भी कहा जाता है कि सदानन्द योगीद कृष्णानन्द के गुरु तथा नृसिंह सरस्वती के दादागुरु थे।

‘विद्वन्मनोरञ्जिनी’ व्याख्या के लेखक श्री रामतीर्थ यति मधुसूदन सरस्वती के समकालीन थे, ऐसा महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज प्रभृति विद्वान् अपना अभिमत रखते हैं। इस व्याख्या का रचनाकाल तदनुसार ईसा की सत्रहवीं शताब्दी का द्वितीय चरण माना जा सकता है। यह व्याख्या अत्यन्त विस्तार से सरल भाषा में लिखी गयी है। मूल के आशय का स्फोरण करने के क्रम में गम्भीर विषयों की चर्चा से भी टीकाकार पीछे नहीं हटता। यथा नाम तथा गुण के अनुसार विद्वानों को यह व्याख्या अत्यन्त प्रिय है।

‘बालबोधिनी’ मीमांसा के सुप्रसिद्ध विद्वान् आपदेव के द्वारा लिखी गयी महत्त्वपूर्ण व्याख्या है। यह व्याख्या इसके पूर्व वाणीविलास प्रकाशन, श्रीरङ्गम्, से सन् १९११ में प्रकाशित हुई थी। इस समय यहाँ पर पुनः सुसंस्कृत-सम्पादित करके प्रकाशित की जा रही है। इन तीन प्रसिद्ध व्याख्याओं से अतिरिक्त भी अनेक व्याख्याओं का नामोल्लेख हस्तलेखों के सूची पुस्तकों में प्राप्त होता है, परन्तु वे अभी तक प्रकाशित नहीं हैं। हिन्दी में आचार्य बदरीनाथ शुक्ल की महत्त्वपूर्ण व्याख्या प्रकाशित हो चुकी है। इसके अतिरिक्त भी अनेक व्याख्याएँ विभिन्न आधुनिक भाषाओं में प्रकाशित हैं।

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