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Vedic Sahitya ki Roop Rekha (वैदिक साहित्य की रूपरेखा)

36.00

Author Smt. Shushila Singh
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 2001
ISBN 81-87415-19-3
Pages 130
Cover Paper Back
Size 12 x 2 x 19 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0095
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Description

वैदिक साहित्य की रूपरेखा (Vedic Sahitya ki Roop Rekha) वेद भारतीय धर्म की निधि है। यह ऐसी अमूल्य धरोहर है जो सहस्त्रों वर्षों से अपने अमृत द्वारा मानव समाज को आप्यायित करती आ रही है। इसका लाभ केवल भारतीयों ने नहीं उठाया वरन् पाश्चात्य देशों के विद्वान् भी इससे लाभान्वित हुये हैं। केवल यह देवों की स्तुति मात्र नहीं है इसमें सम्पूर्ण चिकित्सा शास्त्र, विज्ञान, दर्शन, अध्यात्म भरा हुआ है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी इसकी महान् उपयोगिता है। भाषाविज्ञान के लिए वेदों का अध्ययन-अध्यापन नितान्त आवश्यक है।

संस्कृत भाषा संसार की आदिम भाषा है। इसके पूर्व आदिम भाषा के विषय में महान् मतभेद था। कोई ग्रीक भाषा को समस्त भाषाओं की जननी मानता था तो कोई लैटिन को आदिम भाषा मानता था। कुछ विद्वान् हिब्रू भाषा को प्राचीनतम भाषा मानते थे परन्तु संस्कृत को आदिम भाषा मानने पर तथा वेदों को सर्वप्राचीन पुस्तक मानने पर इन सब विप्रतिपत्तियों का खण्डन हुआ। सायण ने वेद का लक्षण इस प्रकार किया है “इष्ट-प्राप्त्यनिष्ट परिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेदः” अर्थात् इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के परिहार के लिए अलौकिक उपाय बताने वाला ग्रन्थ वेद ही है।

वेद का अध्ययन तीनो वर्षों के लिए विहिन है यथा ब्राहाण, क्षत्रिय, वैश्य। परन्तु ब्राह्मणों के ऊपर इनकी रक्षा व परम्परा के निर्वाह का अधिक दायित्व था। कहा भी गया है “ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मो षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च” अर्थात् ब्राह्मण का यह धर्म है कि बिना किसी फल की आशा किये ही छः अङ्गों सहित वेद का अध्ययन एवं ज्ञान करें। वेद के अर्थज्ञान की विशेष उपयोगिता है। केवल पाठ मात्र से दृष्ट फल की प्राप्ति होती है परन्तु अर्थज्ञान के द्वारा अदृष्ट फलों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति मंत्रो का अध्ययन करके भी उसके अर्थ को नहीं जानता वह स्थाणु की भाँति केवल भार का ही वहन करता है परन्तु जो अर्थज्ञ है वह सम्पूर्ण कल्याण को प्राप्त करता है।

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