Mudra Rakshas Parishilan (मुद्राराक्षस परिशीलन)
₹60.00
Author | Tribhuvan Mishra |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2012 |
ISBN | - |
Pages | 164 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0545 |
Other | Dispatched in 3 days |
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मुद्राराक्षस परिशीलन (Mudra Rakshas Parishilan) महाकवि विशाखदत्त की अमर कृति मुद्राराक्षस संस्कृत-साहित्य में अपने ढंग का अकेला नाटक सिद्ध हुआ है। इस नाटक में इतिहास व राजनीति का सुन्दर समन्वय हुआ है। एक ओर नन्दवंश के विनाश की काली छाया विद्यमान है तो दूसरी ओर चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण की चाँदनी भी थिरक रही है। राक्षस के सक्रिय विरोध के काले मेघ मंडरा रहे हैं तो कौटिल्य की कुटिल नीति की सजगता भी संदश्यं है। अन्त में राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व स्वीकृति से कौटिल्य की कूटनीतिक विजय है। इस नाटक में सर्वत्र साहित्य और राजनीति का मणिकांचन योग विद्यमान है।
संस्कृत-साहित्य में पर्यालोचन की एक प्रचलित परम्परा चली आ रही है- किसी भी कृति को प्राचीन शास्त्रीय मर्यादा की कसौटी पर खरा उतारने की। इसमें उस कृति के नामकरण, मूल स्रोत, कथानक और नाट्यशास्त्र के मूल सिद्धान्तों के पालन की परख की जाती है। दार्शनिक दृष्टि से कृति के नामों की सार्थकता भले ही महत्त्वपूर्ण न हो, परन्तु साहित्यिक दृष्टि से नामों की सार्थकता को आवश्यक मानती है। क्षेमेन्द्र ने औचित्यविचारचर्चा में लिखा है- ‘नाम्ना कार्यानुरूपेण ज्ञायते गुणदोषयोः’। ऐसी दशा में किसी वस्तु के प्रकृत अर्थ के अनुरूप नाम चुनने में कवि की कला लक्षित होती है। इसी अन्वर्थकता को दृष्टि में रख कर विशाखदत्त ने अपनी कृति का नाम मुद्रा-राक्षस रखा है। ‘मुद्राराक्षसम्’ की व्युत्पत्तिपरक व्याख्या इस प्रकार की जाती है- ‘मुद्रया परिगृहीतो राक्षसोऽत्र इति मध्यमपदलोपिसमासः, पुनः तदधिकृत्य कृते ग्रन्थे इति सूत्रत्वात् अणन्त्वात् नपुंसकम् – मुद्राराक्षसम्’। अर्थात् इस नाटक में मुद्रा के करामात से राक्षस वशीभूत हुआ है, इस मुख्य घटना को आधार बना कर लिखा गया ग्रन्थ ‘मुद्राराक्षसम्’ है। इस प्रकार का नामकरण कालिदास ने भी ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ का किया है।
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