Kashi Yatra (काशी यात्रा)
₹151.00
Author | Dr. Shyam Bapat |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 2024 |
ISBN | 978-93-9298977-3 |
Pages | 160 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0457 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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Kashi Yatra (काशी यात्रा) वैसे तो तीर्थयात्रा सभी धर्मों सम्प्रदायों में की जाती है। परन्तु तीर्थयात्रा का सनातन वैदाश्रित हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दु धर्म में प्रधान स्थान है। प्रत्येक आस्तिक हिन्दु व नी यह इच्छा होती है कि एक बार भारत के सम्पूर्ण तीर्थों का दर्शन अवगाहन कर अपने आप को कृतार्थ करें। कभी-कभी अपनी आर्थिक स्थिति की भी चिन्ता न कर कुछ लोग तीर्थाटन के लिये सारे कष्ट सहकर चल देते हैं। निश्चय ही तीर्थों में कुछ ऐसा विशिष्ट तत्त्व होगा जिसको प्राप्त करने हेतु लोग इतना त्याग करने कष्ट उठाने के लिये भी तैयार हो जाते हैं
महाभारत के अनुसार जिस प्रकार हमारे शरीर में हृदय, मस्तिष्क आदि अन्य अङ्गों की तुलना में विशिष्ट माने जाते है, वैसे ही पृथ्वी पर किसी स्थान विशेष के अद्भुत प्रभाव से, कहीं गङ्गादि पवित्र नदियों के प्रवाह से, कही भगवान् की क्रीड़ा भूमि होने से, तो कहीं ऋषि-मुनि, महात्माओं की तपोभूमि होने से वे स्थान विशिष्ट और पुण्यप्रद हो जाते हैं।
हमारे भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कल्पना की गयी है। धर्मपूर्वक अर्थ, काम का सेवन करने के उपरान्त मोक्ष या भगवद्माप्ति ही मनुष्य जीवन का परम लाभ कहा गया है। भगवद् प्राप्ति के लिये, भगवान् का ज्ञान होना आवश्यक है और वह ज्ञान कामलोभ वर्जित साधु सङ्ग से ही होता है। ऐसे सत्पुरुष तीर्थों में ही मिलते हैं। इसलिये तीर्थयात्रा सभी को करनी चाहिये, जैसा कि पद्मपुराण में कहा है-
स हरिर्ज्ञायते साधुसङ्गमात् पापवर्जितात्।
येषां कृपातः पुरुषा भवन्त्यसुखवर्जिताः ।।
ते साधवाः शान्तरागाः कामलोभविवर्जिताः ।
ब्रुवन्ति यन्महाराज तत् संसार निवर्तकम् ।।
तीर्थेषु लभ्यते साधू रामचन्द्र परायणः।
यद्दर्शनं नृणां पापराशिदाहाशुशुक्षणिः ।।
तस्मात् तीर्थेषु गन्तव्यं नरैः संसार भीरुभिः।
पुण्योदकेषु सततं साधुश्रेणिविराजिषुः ।। – पद्मपुराण पातालखण्ड १४-१७
महाभारत में तीर्थाटन या तीर्थाभिगमन यज्ञों से भी बड़ा कहा गया है –
ऋषीणां परमं गुह्यमिदं भरतसत्तम।
तीर्थाभिगमनं पुण्यं यज्ञैरपि विशिष्यते ।। – म० भा० वन० ८२/१७
‘विष्णु पुराण’ आदि ग्रन्थों में कहा है कि महापातक उपपातक सभी तीर्थाटन से दूर हो जाते हैं-
अनुपातकिनस्त्वेते महापातकिनों तथा।
अश्वमेधेन शुद्ध्यन्ति तीर्थानुसरणेन च।। – विष्णु ० ३/६/८
मत्स्य-पुराण के अनुसार स्वर्ग, भूमि और अन्तरिक्ष में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ बतलाये गये हैं-
तिस्रः कोप्येतुर्ध कोटी च तीर्थानां वायुरब्रवीत्।
दिवि भुव्यन्तरिक्षे च तानि ते साती जाह्रवि ।। – मत्स्य १०१/५
भारतवर्ष स्वयं में तीर्थ है। उसमें भी चारोधाम, सप्तपुरियाँ, द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग आदि अनेक तीर्थों का वर्णन है, किन्तु इन सभी में काशी का स्थान सवर्वोपरि है और सर्वतीर्थमयी गङ्गा के यहाँ आ जाने से इसकी महिमा और भी बढ़ गयी। काशी सर्वक्षेत्रमयी कही गयी है। इस प्रकार काशी सर्वतीर्थमयी और सर्वक्षेत्रमयी दोनों कही गयी है। गङ्गा ने ब्रह्मवैवर्त पुराण के काशी रहस्य में स्वयं राजा पुण्यकीर्ति से काशी के विषय में कहा है- काशी चित्कला अर्थात् ज्ञानकला पराशक्ति भगवती ही है जैसा कि श्रुति भी कहती है- “तस्यां शिखायां मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः” अर्थात् उसके शिखा के मध्य में ज्ञानमय परमात्मा व्यवस्थित है। सबकी मुक्ति ही इसका अतुलनीय प्रभाव है। इसकी प्रसिद्धि भगवान् विष्णु के द्वारा हुई है। मध्यमेश्वर के चारो ओर पञ्चक्रोशात्मक लिङ्ग के रूप में इसकी स्थिति है। यहाँ शाश्वत मोक्ष की स्थिति है। जितेन्द्रिय और धर्मनिष्ठ जनों को ही यह प्राप्त होती है-
चित्कला काशिका तात ! प्रभावोऽस्या विमोचनम् ।
विष्णुनाऽ ऽ ख्यातिमायाता पञ्चक्रोशात्मक स्थितिः ।।
जितेन्द्रियैर्धर्मपरैः प्राप्या यच्छति शाश्वतम्।। – का०२० २१/८३-८४
काशी में समस्त तीर्थों और क्षेत्रों का वास होने के कारण काशी के दर्शन और परिक्रमा और यात्रा करने से सभी तीर्थों की यात्रा अनायास ही हो जाती है। काशी शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य और सौरि सभी सम्प्रदायों के लिये विशेष आदर का केन्द्र है और ब्रह्मरूपा होने से सभी का इसमें समावेश हो जाता है। वैसे तो काशी में अनेक तीर्थ यात्राएँ प्रचलित हैं परन्तु प्रस्तुत पुस्तक ‘काशीयात्रा’ और ‘काशीदर्शन’ में कुछ प्रमुख यात्राओं, देवायतनों, घाटों, मठों आदि का विवरण दिया है। काशी के विषय में जानने वाले विद्वानों, यात्राकर्ताओं एवं हित चिन्तकों के सहयोग से ही यह प्रयास किञ्चित् सफल हो सका है। एतदर्थ सभी महानुभाव वन्दनीय हैं, जिनके प्रति कृतज्ञता व्यक्ता करता हूँ।
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