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Spandakarika (स्पन्दकारिका)

637.00

Author Shyamakant Dwivedi Anand
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2024
ISBN 978-93-83721-43-6
Pages 514
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0916
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Description

स्पन्दकारिका (Spandakarika) वैश्विक घरातल पर भारतीय दर्शन की जो अपनी पहचान है वह मुख्यतया ‘योगशास्त्र’, तन्त्रशास्त्र एवं अद्वैतवादी वेदान्त या अद्वैतप्राण दृष्टि को लेकर है। भारतीय दर्शनों पर जितने भी ग्रन्थ लिखे गए उनमें मुख्यतया चार्वाक, सांख्य, योग, वेदान्त, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, जैन एवं बौद्ध दर्शनों पर ही प्रकाश डाला गया। तान्त्रिक दर्शन को स्वतन्त्र दर्शन मानकर उस पर स्वतन्त्र रूप से प्रकाश नहीं डाला गया। आचार्य बलदेव उपाध्याय एवं डॉ० उमेश मिश्र ने उनको यह स्थान दिया तो, किन्तु तान्त्रिक दर्शन की मूलभूत दृष्टियों, विशिष्ट सिद्धान्तों, मौलिक स्थापनाओं एवं भारतीय दर्शनों में उनके मूल्यांकन, महत्व एवं स्थान के सन्दर्भ में विशेष प्रकाश नहीं डाला। तान्त्रिक दृष्टि एवं उसकी स्थापनाएँ वैदिक काल से अद्यतन काल तक समस्त दार्शनिक सम्प्रदायों, दर्शनों एवं मतों को प्रभावित करती रही हैं। किन्तु फिर भी भारतीय दर्शनों पर ग्रन्थ लिखने वाले लेखकों ने उनकी उपेक्षा की है।

इसी अक्षम्य उपेक्षा को दृष्टि में रखकर केवल तन्त्र (आगम) शास्त्र को ही अपने लेखन का विषय चुना। जहाँ तक अद्वैतवाद की बात है इसके विभिन्न प्रस्थान एवं विभित्र प्रकार है; यथा (१) शब्दाद्वैतवाद, (२) ब्रह्माद्वैतवाद, (३) शांकर अद्वैतवाद, (४) शून्याद्वैतवाद, (५) विज्ञानाद्वैतवाद, (६) द्वैताद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद आदि। किन्तु इन सबसे पृथक् त्रिक दर्शन का ‘द्वयात्मक अद्वैतवाद’ (ईश्वराद्वयवाद, विमर्शप्रकाशात्मक अद्वयवाद) भी है। काश्मीर का अद्वैतवादी शैव दर्शन (त्रिक दर्शन) ‘स्पन्ददर्शन’ एवं ‘प्रत्यभिज्ञादर्शन’ की दो मुख्य धाराओं में विभाजित है। इन दोनों दार्शनिक धाराओं का मूल उत्स ‘शिवसूत्र’ है।

प्रस्तुत ग्रन्थ स्पन्दकारिका, स्पन्दसूत्र या स्पन्दशास्त्र एक ही ग्रन्थ के विभिन्न अभिधान है। आचार्य क्षेमराज ने ‘शिवसूत्रविमर्शिनी’ में कहा है कि शिलोत्कीर्णा, स्वप्नदृष्ट शिवोपनिषद्रस्वरूप शिवसूत्रों को हृदयंगम करके काश्मीरी शैवाचार्य वसुगुप्त ने इन्हें मट्टकावट आदि शिष्यों को पढ़ाया और शिवसूत्रों की व्याख्या के रूप में (वसुगुप्त ने) (अपने शिष्यों को) जो उपदेश दिया और इन अपने उपदेशों को पुस्तकाकार संगृहीत किया वही शिवसूत्रोद्भावित एवं संगृहीत उपदेश-ग्रन्थ ‘स्पन्दकारिका’ है।

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